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टिप्पणियाँ
ई प्रत्यय लगा है । मणिअडा--सूत्र ४१४३० के अनुसार मणि शब्द के आगे स्वार्थे प्रत्यय आये हैं।
श्लोक ३--हे सखि, ( मुझे लगता है कि ) सुंदरी के नयनरूपी सरोवर प्रायः अश्रुजल से भर-भरकर बहते हैं, इसलिए वे ( नयन ) जब ( किसी की ओर देखने के लिए ) सामने मुड़ते हैं, तब वे तिरछी चोट करते हैं ।
यहाँ प्रायस् को प्राइम्व आदेश हुआ है। घत्त-घात शब्द में से त का द्वित्व होकर ( सूत्र २.९८-५९ ) यह वर्णान्तर हुआ है ।
श्लोक ४-प्रियकर आयेगा; मैं रूठ जाऊँगी; रूठी हुई मुझे वह मनाएगा (मेरा अनुनय करेगा । प्रायः दुष्ट ( दुष्कर ) प्रियकर ऐसे मनोरथ करवाता है ।
यहाँ प्रायस् को पग्गिम्ब आदेश है। रू से सं-सत्र ४३८८,३८५, ४१० देखिए। सूत्र ३.१५७ के अनुसार धातु के अन्त्य अ का ए हुआ है। मणोरहई--यहां मणोरह शब्द नपुंसकलिंग में प्रयुक्त है।
४.४१५ श्लोक १--विरहाग्नि की ज्वाला से प्रदीप्त ( जला ) कोई पथिक ( यहाँ ) डूर कर स्थित है; अन्यथा ( इस ) शिशिरकाल में शीतल जल से भाप/धुंआ कैसे उठा हो। ___ यहाँ अन्यथा को अनु आदेश है। बुडिडवि--मत्र ४.४३९ देखिए । बुड्ड धातु मसज धातु का आदेश है ( सूत्र ४१०१ )। ठिअउ उटिठ अउ--ठिअ और उठ्ठिअ के आगे सत्र ४४२९ के अनुसार स्वार्थे अ प्रत्यय आया है । कहंतिहु--सूत्र ४०४१६ देखिए।
४१६ श्लोक १--मेरा कान्त / प्रियकर घर में स्थित होने पर, झोंपडे कहाँ से ( = कैसे ) जल रहे है ( जलेंगे ) ? शत्रु के रक्त से अथवा अपने रक्त से वह उन्हें बुझायेगा, इसमें शंका नहीं है ।
यहाँ कुतस् को क उ आदेश है । झंपडा--मराठी में झाप, झोपडी । धूमु...." उठ्ठिअउ-- यहां कुतस् को कहन्तिहु आदेश है ।
४.४१५७ श्लोक १-श्लोक ४.३७९.२ देखिए ।
४.४१८ श्लोक १-प्रिय-संगम के काल में निद्रा कहाँ से आयेगी ? प्रियकरके सन्निध न होने पर कहाँ से निद्रा ? मेरी दोनों भी ( प्रकार की ) निद्राएं नष्ट हुई हैं। मुझे यों ही ( ऐसे भी) न नींद आती है न त्यों भी ( वैसे भी ) नोंद आती है।
यहाँ एवम् को एम्व आदेश है । कउ--सूत्र ४.४१६ देखिए । निद्दढी-सूत्र ४°४२९,४३१ देखिए । केम्व तेम्व-कथम् और तथा इनके ये आदेश हेमचन्द्र ने नहीं कहे हैं।
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