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________________ ३९६ टिप्पणियाँ ४·३५६ जहे तहे कहे - इन षष्ठी एकवचनों में अहे आदेश है । केरउ-सम्बन्धिन् शब्द को केर ऐसा आदेश होता है ( सूत्र ४४२२ ); उसके आगे स्वार्थे अ ( सूत्र ४४२९ ) आकर यह रूप बनता है । ४.३६० श्लोक १ – जबकि मेरा नाथ आँगन में खड़ा है, इसी कारण वह रणक्षेत्र में भ्रमण नहीं करता है । द्वितीया के एकवचन बोल्लिअइ — बोल्ल यहाँ धुं और ये यद् और तद् सर्वनामों के प्रथमा और के वैकल्पिक रूप हैं । चिट्ठदि करदि – मूत्र ४२७३ देखिए । धातु के कर्मणि अंग से बना हुआ रूप । बोल्ल धातु कथ् धातु का आदेश है ( सूत्र ४.२ ) । ४३६१ तुह — सूत्र ३०९ देखिए । ४०३६२ श्लोक १ – यह कुमारी, यह ( मैं ) पुरुष, है । ( जब ) मूर्ख ( केवल ) ऐसा ही विचार करते ( सहसा ) प्रभात ( सवेरा ) हो जाता है । यहाँ एह यह स्त्रीलिंगी, एहो यह पुल्लिंगी और एहु यह नपुंसकलिंगी एतद् सर्वनाम के प्रथमा एकवचन हैं । एहउँ - एह के आगे स्वार्थे अ ( सूत्र ४. ४२६ ) आया है । वढ - सूत्र ४२२२ ऊपर की वृत्ति देखिए । पच्छइ — सूत्र ४४२० देखिए । यह मनोरथों का स्थान रहते हैं ( तब बाद में ) ४ ३६३ एइ भलि - एइ यह एतद् का प्रथमा अनेकवचन है । एइ पेच्छ - यहाँ एइ यह एतद् का द्वितीया एकवचन है । ४ ३६४ श्लोक १ – यदि बड़े घर तुम पूछते हो, तो वे ( देखो ) बड़े घर | ( परन्तु ) दुःखी लोगों का उद्धार करने वाला ( मेरा ) प्रियकर झोंपड़ी में है ( उसको ) देखो । यहाँ ओइ यह अदस् के प्रथमा और द्वितीया अनेकवचन है । Jain Education International ४°३६५ इदम्॰॰॰ ॰॰॰भवति - विभक्ति प्रत्यय के पूर्व इदं सर्वनाम का आय - -- ऐसा अंग होता है । श्लोक १- लोगों के इन नयनों को ( पूर्व ) जन्म का स्मरण होता है, इसमें कोई शंका नहीं ( कारण ) अप्रिय ( वस्तु ) को देखकर वे संकुचित होते हैं और प्रिय ( पदार्थ ) को देखकर विकसित होते हैं । यहाँ आय इस प्रथमा अनेकवचन में आय ऐसा आदेश है । इस श्लोक में जाई - सरई ऐसा एक ही शब्द लेकर, जाति स्मराणि ऐसी संस्कृत छाया लेना अधिक योग्य लगता है । मउलि अहिं – सूत्र ४० ३८२ देखिए । --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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