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________________ ३९२ टिप्पणियां श्लोक में एक विरहिणी का वर्णन है। वह कौवे की आवाज सुनती है पर आता हुमा प्रियकर उसे नहीं दिखाई देता। इसलिए वह निराश होकर कौवे को हकालती थी। पर इतने में प्रियकर उसके दृष्टिपथ में आ गया। परिणाम यह हुआ--कौवे को हकालने की क्रिया में, विरहावस्था में कृशता के कारण ढीली हुई उसकी आधी चूड़ियाँ जमीन पर गिर पडी; परन्तु प्रियकर को देखने से जो आनन्द प्राप्त हुआ, उससे उसका शरीर-अर्थात हाथ भी-बढ गया; उस कारण से उसकी शेष आधी चूड़ियाँ ( हाथों पर छोटी होने के कारण ) तड-तड टूट गई। ____ इस श्लोक में, महिहि इस सप्तमी एकवचन में हि आदेश है। दिट्ठ उ--सूत्र ४°४२९ के अनुसार दिट्ठ के आगे स्वार्थे अकार आया है । ४.३५३ यहाँ कहे हुए इं प्रत्यय के पूर्व संज्ञा का अन्त्य ह्रस्व स्वर विकल्प से दीर्घ होता है ( सूत्र ४.३३० देखिए )। श्लोक १-कमलों को छोड़ कर भ्रमर-समूह हाथियों के गण्डस्थलों की इच्छा करते हैं। दुर्लभ ( वस्तु ) प्राप्त करने का जिनका आग्रह है वे दूरी का विवार नहीं करते। __ यहाँ उलई इस प्रथमा अनेकवचन में और कमलई तथा गण्डाई इन द्वितीया अनेकवचनों में इं आदेश है । मेल्लवि-सूत्र ४.४३६ देखिए । मेल्ल मुच् धातु का आदेश है (सूत्र ४.९१ देखिए )। मह-यह कांक्ष धातु का आदेश है ( सूत्र ४१६२ )। एच्छण-सूत्र ४४४१ देखिए । अलि ( देशी )-निबंध, हठ, आग्रह । ४.३५४ ककारान्तस्य नाम्नः--ककारान्त संज्ञा का | ककार से यानी क से अन्त होने वाली संज्ञा । संज्ञा के अन्त में आने वाला यह क स्थाथै है ( सूत्र ४.४२६ देखिए । । अन्नु....."धणहे-यहाँ तुच्छउ में उ आदेश है । श्लोक १ --अपनी सेना भागती हुई या पराभूत हुई देख कर और शत्रु की सेना फैलती हुई देखकर, ( मेरे ) प्रियकर के हाथ में चन्द्रलेखा की समान तलवार चमचमाने लगती है। यहाँ भग्गउँ और पसरिअ' इन द्वितीया एकवचनों में उ आदेश है। सत्र ३३१-३५४ सूत्रों में आया हुआ अपभ्रंश में से संज्ञाओं का रूपविचार निम्नानुसार इकट्ठा करके कहा जा सकता है : ___अकारान्तपुल्लिगी देव शब्द विभक्ति ए०व० अ० व० प्र० देव, देवा, देवु, देवो देव, देवा द्वि. देव, देवा, देवु देव, देवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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