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प्राकृतव्याकरण-चतुर्थपाद
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४.३१३ ष्ट्वा-संस्कृत में कुछ धातुओं को क्त्वा प्रत्यय लगने पर ष्ट्वा होता है । उदा०-दृष्ट्वा , इत्यादि ।
४.३१४ रिय सिन सट-यं, स्न और ष्ट इन संयुक्त व्यञ्जनों में स्वरभक्ति होकर ये आदेश बने हुए हैं ।
४.३१५ क्य-प्रत्यय-सूत्र ३.१६. ऊपर की टिप्पणी देखिए । ४.३१६ डीर-डित् ईर । य्येव-सत्र ४.२८० देखिए । ४.३१७ अञआतिसो--अन्यादृश शब्द में सूत्र ४.३०५ के अनुसार न्य का न
हुआ है।
४.३१८-३११--पैशाची में वर्तमान काल के तृतीय पुरुष एकवचन में और ते ऐसे प्रत्यय हैं।
४.३२० एय्य....."स्सिः--शोरसेनी के समान पैशाची में भविष्यकाल में स्त्रि (सूत्र ४२७५ ) न आते, एय्य आता है।
४.३२२ पैशाची में तद् और इदम् सर्वनामों के पुल्लिगी तृतीया एकवचन 'तेन' और स्त्रीलिंगी तृतीया एकवचन 'नाए' ऐसा होता है।
४.३२३ अध....."हवेय्य--अध शब्द में थ का ध ( सूत्र ४.२६७ ) और भयवं (सूत्र ४२६५ ) में शौरसेनी के समान हैं। एवं विधाए“कतं--कधं शब्द में शौरसेनी के समान थ का ध है । एतिसं...."दळून-यहां पूर्व शब्द का पुरव वर्णान्तर शौरसेनी के समान है ( सूत्र ४२७०)। भगवं.... 'लोक-भगवं ( सूत्र ४२६४) और दाव (सूत्र ४२६२ ) शौरसेनी के समान हैं। ताव च..'राजाम्येव शब्द शौरसेनी के समान (सूत्र ४२८०) है।
४३२४ मकरशतू, सगर पुत्तवचनं-यहां क ग च त प और व इनका लोप सूत्र १.१७७ के अनुसार नहीं हुआ हैं । विजयसेनेन लपितं-यहां सूत्र १.१७७ के अनुसार ज, त और य का लोप नहीं हुआ, तथा सूत्र १.२२८ के अनुसार न का नहीं हुआ, और सूत्र १.२३१ के अनुसार ५ का व नहीं हुआ है। मतनं-द् का लोप ( सूत्र ११७७ ) और न का ण ( सूत्र १.२८८) नहीं हुआ है। पापं--प् का लोप ( सूत्र १.१७७ ) अथवा प का व (सूत्र १.२३१ ) नहीं हुआ है । आयुधं-य् का लोप (सूत्र ११७७ ) और ध का ह (मूत्र ११८७ ) नहीं हुआ है । तेवरोव का लोप (सूत्र १३७७ ) नहीं हुआ है।
४३२५-३२८ इन सूत्रों में चूलिका पैशाचिक भाषा का विचार है । ( यह पैशाची को उपभाषा है)। ... ४.३२५ वर्गाणाम्--वर्ग में से व्यञ्जनों का । तुर्य--चौथा, चतुर्थ । क्वचिल्लाक्षणि.." ताठा-व्याकरण के नियमानुसार आने वाले व्यञ्जनों के बारे में भी इस
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