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________________ ३८१ टिप्पणियाँ ४.२६५ तिरिच्छि--सूत्र २.१४३ देखिए । पेस्कदि-सूत्र ४२९७ देखिए । ४.२६६ जिह वामूलीयः-सूत्र २.७७ ऊपर की टिप्पणी देखिए। ४.२६८ स्थाधातोः....."त्यादेश:--सच कहे तो स्था धातु को तिष्ठ ऐसा आदेश हेमचन्द्र ने नहीं कहा है। ४२६६ हगे--सूत्र ४३०१ देखिए । एलिश-सूत्र ११०५, १४२ और ४.२८८ देखिए। ४.३०० अनुनासिकान्तः डिद् आहादेशः-अनुनासिक से अन्त होने वाला डित आह आदेश यानी डित् आह ऐसा आदेश । ४.३०२ अभ्यूह्य-विचार करकर । ४.३०३-३२४ इन सूत्रों में पैशाची भाग का विचार है। ४.३०३ पैशाची में मागधी के समान ज्ञ का न होता है। ४३०५ पैशाची में मागधी के समान न्य और ण्य का न होता है। ४.३०६ ग्रामीण मराठी में ण का न होता है। हिंदी में तो न का ही उपयोग है। ४.३०७ तकारस्यापि..... बाधनार्थम् -पैशाची में प्रायः शौरसेनी के समान कार्य होता है ( सूत्र ४.३२३ देखिए )। तथापि शौरसेनी के समान पैशाची में त का द न होते, त वैसा ही रहता । (माहाराष्ट्री ) प्राकृत में त् को अनेक आदेश होते हैं ( उदा०-१.१७७, २०४-२१४ देखिए )। ये कोई भी आदेश पैशाची में नहीं होते हैं। इसलिए तकार से त के बिना अन्य सर्व आदेशों का बाध करने के लिए, प्रस्तुत सूत्र में तकार का तकार होता है, ऐसा विधान किया है। ४.३०८ मराठी में प्रायः ल का ल होता है। ४.३०६ न कगच..."योगः-प्राकृत में श् और ष का स् होता है, वैसा पैशाची में वह होता है, ऐसा इस सूत्र में क्यों कहा है, इस प्रश्न का उत्तर इस वाक्य में दिया है। सूत्र ४३२४ कहता है कि माहाराष्ट्री प्राकृत को लागू पड़ने वाले सत्र १.१७७-९६५ ये पैशाची को लागू नहीं पड़ते । इन निषिद्ध किए सूत्रों में ही श और ष का स होता है, यह कहने वाला सूत्र १२६० है। इसलिए यह १२६० सूत्र पैशाची को नहीं लागू होगा। परन्तु पैशाची में तो श और ष का स होता है। इसलिए सूत्र ४.३२४ में से बाधक नियम का बाध करने के लिए प्रस्तुत सूत्र में नियम ( भोग) कहा है। ४.३११ टोः स्थाने तः-टु और तु ये उदित् ( जिनमें उ-उत्-इत् है ) अक्षर हैं। उ के पिछले वर्ण से सूचित होने वाला व्यञ्जनों का वर्ग ये उदित् अक्षर दिखाते हैं। उदा.--टु-ट वर्षीय व्यञ्जन तुम्न वर्गीय व्यञ्जन । . ४.३१२ नून-प्राकृत में तूण में सूत्र ४.३०६ के अनुसार ण का न हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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