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________________ -३५० टिप्पणियां २२म्० थू-मराठी मे थू। २.२०१ रे हिअय मडहसरिआ-रे हृदय मृतक सदृश; अथवा:-रे हृदय मडह ( = अल्प )-सरित् । पहले वर्णान्तर के लिए 'मडव-सरिसा' ऐसे शब्द आवश्यक थे। सडह शब्द अल्प नर्थ में देशी शब्द है। २.२०२ हरे-अरे शब्द में ह का आदिवांगम होकर हरे शब्द बना, ऐसा कहा जा सकता है। २.२०३ ओ-मराठी में ओ । तत्तिल्ल-यह तत्पर के अर्थ मे देशी शब्द है । विकल्पे सिद्धम्-उत यह एक विकल्प दिखाने वाला अव्यय है; सूत्र १.७७२ के अनुसार उसका ओ होता है । इस लिए विकल्प दिखाने वाला ओ अव्यय उत को होने वाले आदेश से सिद्ध हुआ है । १.२०४ श्लोक १-धूर्त लोग तरुण स्त्रियों का हृदय चुराते हैं (हरण करते हैं), तथापि भी वे उनके द्वेष के पात्र नहीं होते हैं; यह आश्चर्य है। अन्य जनों से (कुछ) अधिक होने वाले ये धूर्तजन कुछ रहस्य जानते हैं। श्लोक २-( अच्छा!)। यह सुप्रभात हुई। आज हमारा जीवित सफल हुआ। तेरे जाने के बाद केवल यह ( स्त्री ) खिन्न नहीं होगी। सप्फलं—सूत्र २.७७ देखिए । जी-जीवित शब्द में सत्र १ २७१ के अनुसार 'वि' का लोप हुआ। जूरिहिई--सूत्र ३.१६६ देखिए । श्लोक ३-उसके ही वेही गुण अब; अरेरे, धीरज नष्ट करते हैं, रोमांच बढ़ाते हैं, और पीड़ा देते हैं । अहो, यह भला किस तरह होता है ? रणरणय-यह शब्द पीडा इत्यादि अर्थों में देशी शब्द है। श्लोक ४--अरेरे, उसने मुझे ऐसा कुछ किया कि में वह किसको । भला ) कैसे कहूँ ? साहेमि-साह शब्द कथ् धातु का आदेश हैं । ( सूत्र ४२ देखिए )। २.२०५ पेच्छसि-तेच्छ शब्द दृश् धातु का आदेश है ( सूत्र ४१८१ देखिए )। २.२०६ मुच्चइ-मुच्च शब्द मुंच (/मुच्) धातु का कर्मणि अंग है। २.२०८ पारिज्जइ-पारिज्ज शब्द पार धातु का कर्मणि अंग हैं । और पार धातु शक् धातु का आदेश है ( सूत्र ४.८६ देखिए )। २.२११ श्लोक १--निमल पाचू के पात्र में रखे हुए शंख शुक्ति के समान, कमलिनी के पत्र के ऊपर निश्चल और हलचल रहित बलाका शोभती है। रेहइरेह शब्द राज धातु का देश है ( सूत्र ४.१०० देखिए )। पक्षे पुलआदयः-पश्य (= देख) इश अर्थ का उअ व्यय न प्रयुक्त हो, तो पुलअ इत्यादि जो दृश् धातु के लादेश होते हैं ( सूत्र ४.१८१ देखिए ), उनके आज्ञार्थी रूप प्रयुक्त हो सकते हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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