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प्राकृतव्याकरण- द्वितीयपाद
२·१७५ यह अधिकार सूत्र है । सूत्र २०२१८ के अन्त तक उसका अधिकार है। २१७६ श्लोक १-- अयि, अशक्त अथवा भक्ति अवयवों से व्यभिचारिणी स्त्री बार-बार सोती है, अथवा-भक्ति अवयवों से व्यभिचारिणी स्त्री बार-बार अति सोती है ।
२·१८० श्लोक १ - अरेरे, वह मेरे चरणों में नन हुआ, मगर मैंने उसका माना नहीं, अब यह बात ) होगी अगर न होगी, ऐसे शब्द बोलने वाली यह ( स्त्री ) निश्चित रूप से तुम्हारे लिए पसीने से तर व्याकुल होती है ।
शब्दों में म् प् और व् इनका सकता है । व- इव शब्द में
२ १७२ मिव पिव विव-- इन होकर ये शब्द बने, ऐसा भी कहा जा लोप होकर । व्व - व् का द्वित्व होकर । २·१८४ सेवादित्वात् - सूत्र २.९१ देखिए ।
२·१८६ इर-फिर शब्द में आदि क् का लोप होकर इर हुआ, ऐसा कहा जा सकता है । हिर- इर शब्द में आदि ह, आकर हिर शब्द बना, ऐसा कहा जा सकता है ।
२१८७ णिव्वडन्ति४.६२ देखिए ) ।
३४९.
आदि वर्णागम आदि वर्णं का
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- पृथक् स्पष्टं मू इसका णिव्वड शब्द आदेश है ( सूत्र
२·१६० नओर्थे-नव् के अर्थ में । नञ् ( न ) यह नकारवाचक अव्यय है । अमुणन्ती - ज्ञा धातु को गुण आदेश होता है ( सूत्र ४७ देखिए ) ; उससे मुणन्ती यह शब्द स्त्रीलिंगी वर्तमान काल बाचक धातुसाधित विशेषण है; उसका नकारार्थी रूप है अन्ती ।
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२०५ε१. काहीअ - इस रूप के लिए सूत्र ३ १६२ देखिए ।
२०१३ श्लोक १- - भय से वेव्वे, निवारण करते समय वेब्वे, खेद - विषाद करते समय वेव्वे, ऐसे बोलने वाली, वेरी, हे सुन्दर स्त्री, वेब्वे का अर्थ हम भला क्या जानें । उल्लविरी - उल्लाविर शब्द का स्त्रीलिंगी रूप । उल्लाविर के लिए सूत्र २ १४५ देखिए । श्लोक २- जोर से बड़-बड़ करने वाली तथा विषाद- खेद करने वाली और डरी हुई तथा उद्विग्न; ऐसे उस स्त्री ने जो कुछ वे ऐसा कहा, बह हम नही भुलेंगे। उल्लावेन्ती - उल्लावेन्त इस व० का० द० का ( सूत्र ३·१८१ देखिए ) । स्त्रीलिंगी रूप । विम्हरिमो - सूत्र ३१४४ देखिए ।
१·१७७ हु --- मराठी में हूँ ।
२·१६६ मुशिआ - मुण ( सूत्र ४७ देखिए ) धातु के क० भू० धा०वि० का स्त्रीलिंगी रूप ।
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