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________________ टिप्पणियाँ उ आण रूप सिद्ध होता है । वन्दि त्त 1- क्वा प्रत्यय के पूर्व बन्द में से अन्त्य अ काइ हुआ; उसके आगे तुम में से अनुस्वार का लोप और त् का द्वित्व हुआ है । वन्दित्ता - वन्दित्वा इस सिद्ध संस्कृत रूप में सूत्र २.७९ के अनुसार, व् का लोप होकर यह रूप सिद्ध हुआ हैं । ३४६ २-१४७ इदमर्थस्य प्रत्ययस्य - तस्य इदम् ( उसका / अमुक का यह ) इस अर्थ में आने थाले प्रत्यय का | उदा०- - पाणिनेः इदं पाणिनीयम् । २०१४८ डित् इक्कः देखिए । ---- - डित् के लिए सूत्र १३७ के ऊपर की टिप्पणी २·१४ε अञ्–युष्मद् और अस्मद् सर्वनामों के आगे इदमर्थ में आने वाला प्रत्यय । २·१५० वते प्रत्ययस्य - वत् ( वति ) प्रत्यय का । ' तत्र तस्येव' ( पाणिनि सूत्र ४.१.११६ ) यह सूत्र और 'तेन तुल्यं क्रिया चेद् वति:' ( पाणिनि सूत्र ४.१.११५ ) यह सूत्र 'वत् प्रत्यय का विधान करते हैं । २·१५१ सव्वं गिओ - यहाँ इक आदेश में से क् का लोप हुआ है । २·१५२ इकट् — इकट् शब्द में ट् इत् है । सूत्र १३७ ऊपर की टिप्पणी देखिए । २-१५३ अप्पनयं -- आत्मन् शब्द के अप्प ( सूत्र २०५१ ) इस वर्णान्तर के आगे णय आदेश आया है । २·१५४ त्व-प्रत्ययस्य-त्व-प्रत्यय को । त्व यह भाववाचक संज्ञा साधने का प्रत्यय है | उदा० - -पीन- पीनत्व । डिमा- -डित् इमा । इम्न नियतत्वात्-सूत्र १०३५ ऊपर की टिप्पणी देखिए । पृथु इत्यादि शब्दों से भाववाचक संज्ञा सिद्ध करने का इमन ऐसा प्रत्यय है । पीनता इत्यस्य... न क्रियते - संस्कृत में भाववाचक संज्ञा साधने का ता ( तल ) ऐसा और एक प्रत्यय है । यह प्रत्यय पीन शब्द को लग कर प्राकृत में ( पीनता ) पोणया ऐसा रूप होता है । त का द होकर होने वाला पीणदा वर्णान्तर दूसरे यानी शौर सेनी भाषा में होता है, प्राकृत में नहीं । इसलिए यहाँ तल ( ता ) प्रत्यय का दा नहीं किया है । यहाँ यह ध्यान में रखिए:वररुचि ( प्राकृत प्रकाश, ४.२२ ) तल् प्रत्यय का दा कहता है । Jain Education International - २·१५५ डेल्ल -- डित् एल्ल | अर्थ में होने वाले २-१५६ डावादेरतोः परिमाणार्थस्य -- परिमाण । इस डावादि अतु प्रत्यय को । क्तवतु वतुप् ड्मतुत्, मतुप् प्रत्ययों को पाणिनि ने अतु संज्ञा दी है । इनमें से वत् ( वतु वतुप् ) यह प्रत्यय और वतुप् इन सर्व For Private & Personal Use Only 1 www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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