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________________ प्राकृतव्याकरण-द्वितीयपाद ३४५ २.१२६ गौणस्य-सूत्र ११३४ ऊपर की टिप्पणी देखिए । २.१३० इत्थी-इ का आदि वर्णागम होकर यह शब्द बना है । २.१३१ दिही-सूत्र १२०९ ऊपर को टिप्पणी देखिए । २.१३२ मञ्जर-मराठी में मांजर। मार्जार-मज्जर-मञ्जर । मञ्जर में से म का व होकर वञ्जर। २.१३६ तह-त्रस्त शब्द में स्त का ठ्ठ होकर । २.१३८ अवहोआसं-उभयपार्श्व अथवा उभयावकाश ऐसा भी संस्कृत प्रतिशब्द हो सकता है । सिप्पी-मराठी में सिंप, शिंपी, शिपलो। २.१४२ माउसिआ-मराठी में मावशी । २.१४४ घरो-मराठी में, हिंदी में धर । २.१४५-१६३ इन सूत्रों में कुछ प्रत्ययों को होने वाले आदेश कहे हैं । २.१४५ शीलधर्म... भवन्ति--अमुक करने का शील (स्वभाव), अमुक करने का धर्म और अमुक के लिए साधु ( अच्छा ) इस अर्थ में कहे हुए प्रत्यय को इर ऐसा आदेश होता है । केचित् "न सिध्यन्ति--धातु से कर्तृवाचक शब्द साधने का तृन् प्रत्यय है। उस तृन् प्रत्यय को ही केवल इर ऐसा आदेश होता है, ऐसा कुछ प्राकृत वैयाकरण कहते हैं। परन्तु उनका मत मान्य किया तो शील इत्यादि दिखाने वाले नमिर (नमनशील), गमिर (गमनशील) इत्यादि शब्द नहीं सिव होंगे। २.१४६ क्त्वाप्रत्ययस्य... भवग्ति-धातु से पूर्वकाल वाचक धातु साधित अव्यय सिद्ध करने का क्त्वा प्रत्यय है । उसको तुम्. अत्, तूण और तुआण ऐसे आदेश होते हैं। ये प्रत्यय धातु को लगने से पहले धातु के अन्त्य अ का इ अथवा ए होता है ( सूत्र : १५७ देखिर)। दटुं-सूत्र ४. १३ के अनुसार क्त्वा प्रत्यय के पूर्व दृश् धातु का 'तुम्' में से त के सह दैट्ट होकर दलृ रूप बनता है। मोत्तुंसूत्र ४.२१२ के अनुसार क्त्वा प्रत्यय के पूर्व मुच् धातु को मोत् ऐसा आदेश होकर यह रूप सिद्ध होता है । भमिअ रमिअ—यहाँ अत् (अ) आदेश के पूर्व धातु के अन्त्य अ का इ हुआ है। घेत्त ण-सूत्र ४.२१० के अनुसार क्त्वा प्रत्यय के पूर्व प्रह, धातु को घेत आदेश होकर यह आदेश होकर यह रूप बनता है। का ऊण-सूत्र ४.२१४ के अनुसार, क्त्वा प्रत्यय के पूर्व कर (V ) धातु को का आदेश होकर यह रूप बनता है। भेत्तु आण-~~क्त्वा प्रत्यय के पूर्व भिद् धातु को भेत् ऐसा आदेश होता है, ऐसा हेमचन्द्र ने नहीं कहा है; तथापि ऐसा आदेश होता है, यह प्रस्तुत उदाहरण से दिखाई देता है । सो उ आण-सूत्र ४.२३७ के अनुसार, श्र धातु में से उ का गुण होकर सो होता है; उसको प्रत्यय लग कर सो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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