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________________ टिप्पणियाँ १४५ दक्षिण- इस शब्द के वर्णान्तर में आने वाले ह में लिए सूत्र २७२ देखिए । १-४६ सिविण - स्वप्न शब्द के इस स्वर भक्ति के लिए सूत्र २०१०८ देखिए । सिमिण -- इसमें से म के लिए सूत्र १२५९ देखिए । दिण्ण-- इस रूप के लिए सूत्र । २·४३ देखिए । ३२४ १४७ पिक्क पक्क - - मराठी भाषा में : पक्का, पिका, पिक ( ला ) | इंगाल -- मराठी में : -- इंगल, इंगली । गिडाल - मराठी में : -- निढक । १·४९ छत्तिवण्ण--स के छ के लिए सूत्र १२६५ देखिए । १-५० मयट् प्रत्यय-- विकार, प्राचुर्य, इत्यादि दिखाने के लिए संस्कृत में मयट् ( मय ) प्रत्यय जोड़ा जाता है । उदा०--- विष विषमय । विसमइओ -- विसमइ के आगे स्वार्थे के ( अ ) प्रत्यय आया है । १·५२ कथं सुणओ - - सुणओ वर्णान्तर श्वन् शब्द में आदि अ बना हुआ दिखाई देता है । परन्तु श्वन् शब्द मात्र सूत्र में नहीं कहा है। रूप कैसे बनता है ऐसा प्रश्न यहाँ है । सा साणो -- सूत्र ३५६ देखिए । १-५३ अस्य णकारेण सहितस्य --शकार से सहित अ का । सूत्र में से खण्डित शब्द में णकार है, परन्तु सूत्र में से वन्द्र शब्द में णकार नही है । सूत्र में से अनेक शब्दों में से एक ही शब्द में से वर्णों का इसी प्रकार का निर्देश हेमचन्द्र सूत्र १.९२ ऊपर की वृत्ति में करना है। अब, णकार का सम्बन्ध सिर्फ खण्डित शब्द के साथ लेना नहीं ऐसा कहे, तो 'बुन्द्रं वुन्द्र' इस उदाहरण के बदले पाठ भेद से होने वाले 'वुद्रं वन्द्र' यह उदाहरण लेकर णकार में नकार अन्तर्भूत है, ऐसा मानना होगा | त्रिविक्रम मात्र कहता है : -- 'चण्डखण्डिते णा वा' (१९२०१९) : - - चण्डखण्डितशब्दयोर्णकारेण सहितस्यादेवर्णस्य उद् भवति । का उ होकर इसलिए यह १-५४ वकाराकारस्य से संपृक्त होने वाले का | १-५५ पकारथकारयोरकारस्य - - प् और य् व्यञ्जनों में से संपृक्त रहने वाले अकार का सुगयत् —— एकदम, एक समय । १-५६ ज्ञस्यणत्वे कृते-ज्ञकाण किए जाने पर । प्राकृत में ज्ञ के बर्णान्तर ण (सूत्र २४ और ज ( सूत्र २८३ ) होते हैं । ज्ञ का ण ऐसा वर्णान्तर किए जाने पर, इस सूत्र का नियम लगता है । १.५८ अच्छेरं .अच्छरीअं - आश्चर्य शब्द के प्राकृत में अनेक वर्णान्तर होते हैं | उदा० – सूत्र २०६६ नुसाद् र्य का र, और सूत्र २०६७ नुसार र्य के रिअ, अर, और रिज्ज होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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