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________________ २७८ चतुर्थः पादः सप्तम्याम् । 'आयाहि जम्महि अन्नहि वि गोरि सु दिज्जहि कन्तु । ___ गय मत्तह चत्तंकुसहं जो अभिडइ हसन्तु ॥ ३ ॥ पक्षे। रुअसि । इत्यादि। अपभ्रंश भाषा में, त्यादि (प्रत्ययों) में से मध्य-त्रय का जो आद्य वचन, उसको हि ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा० ----बप्पीहा..... आस ॥ १ ॥; यात्मनेपद में (हि ऐसा आदेश ):-बप्पीहा कई..... 'घारा ॥ २ ॥; विध्यर्थ में ( हि ऐसा आदेश:-आयहि हसन्तु ॥३॥ (विकल्प-) पक्षमें:-असि, इत्यादि । बहुत्वे हुः ।। ३८४ ॥ त्यादौनां मध्यत्रयस्य सम्बन्धि बहुष्वर्थेषु वर्तमानं यद् वचनं तस्यापभ्रंशे ह इत्यादेशो वा भवति । बलि अब्भत्थणि महमहणु लहुईहूआ सोइ। जइ इच्छह वडहत्तणउंदेह म मग्गह को इ॥१॥ पक्षे । इच्छह । इत्यादि । अपभ्रंश भाषा में, त्यादि ( प्रत्ययों ) में से मध्य अब से संबंधित ( और ) बहु ( अनेक) अर्थ में होनेवाला जो ( बहु-) वचन, उसको हु ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०-बकि "कोइ ? (विकल्प-) पक्षमें:-- इच्छह, इत्यादि । अन्त्यत्रयस्याद्यस्य उं॥ ३८५ ॥ त्यादीनां अन्त्य त्रयस्य यदाद्यं वचनं तस्यापभ्रंशे उ इत्यादेशो वा भवति । विहि विणडउ पीडन्तु गह मं धणि करहि विसाउ।। संपइ कडढउँ वेस जिवं छुडू अग्घइ व वसाउ॥१॥ बलि किज्जउँ सुअणस्सु (४.३३८.१)। पक्षे । कड्ढामि । इत्यादि । अपभ्रंश भाषा में, त्यादि (प्रत्ययों) में से अन्त्य त्रय का जो आधबचन उसके उं ऐसा आदेश बिकल्प से होता है। उदा०--विहि...."बबसाउ ॥१॥; बलि..... सुअणस्सु । (विकल्प--) पक्षमें:-कढामि, इत्यादि । १. मस्मिन जन्मनि बन्यस्मिन्नपि गौरि तं दधाः कान्तम् । ___ गजानां मत्तानां त्यक्ताङकुशानां यः संगच्छते इसन् ॥ २. बले: अभ्यर्थने मधुमपनः लधुकोमतः सोऽपि । यदि इच्छष महत्त्वं (वड्ढत्तणठं) दत्तमा मागयत कमपि ।। ३. विधिविनाटयतुमहाः पीडयन्तु माधन्ये कुरु विषादम् । सम्पदं कर्षाभि वेषमिव यदि अर्धति (=स्यात्) व्यवसायः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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