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प्राकृतव्याकरणे
स्त्रियामादविद्युतः ॥ १५ ॥ स्त्रियां वर्तमानस्य शब्दस्यान्त्यव्यञ्जनस्य आत्वं भवति । विद्युच्छब्दं वर्जयित्वा । लुगपवादः । सरित् सरिआ। प्रतिपद् पाडिवआ। सम्पद् सम्पआ। बहुलाधिकाराद् ईषत्स्पृष्टतरयश्रुतिरपि। सरिया। पाडिवया । सम्पया। अविद्युत इति किम् । विज्जू ।
विद्य त् शब्द छोडकर, अन्य स्त्रीलिंगी शब्दों में अन्त्य व्यंजन का था होता है। अन्त्य व्यंजन का लोप होता है ( १.११ ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदा०-सरित्..... संपआ। बहुल का अधिकार होने से ( यहां आने वाले आ स्वर के उच्चारण की ध्वनि ) किचित् प्रयत्न से उच्चारित य् व्यंजन जैसी भी सुनाई देती है । उदा०-सरिया....'संपया । ( सूत्र में ) विद्युत् शब्द छोड़कर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण विद्युत् शब्द के अन्त्य व्यंजन का 'आ' न होते उसका लोप होता है । उदा.-) विज्जू।
रोरा ॥१६॥ स्त्रियां वर्तमानस्यान्त्यस्य रेफस्य रा इत्यादेशो भवति । आत्त्वापवादः । गिरा। धुरा । पुरा।
स्त्रीलिंगी शब्दों में अन्त्य रेफ को ( = र् व्यंजन को ) रा आदेश होता है। (स्त्रीलिंगी शब्दों में अन्त्य व्यंजन का ) आ होता है ( १.१५ ) इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदा०-गिरा...""पुरा ।
क्षुदो हा ॥ १७॥ क्षुध शब्दस्यान्त्यव्यञ्जनस्य हादेशो भवति । छुहा । क्षुध् शब्द के अन्त्य व्यंजन को हा आदेश होता है । उदा०-छुहा ।
शरदादेरत् ॥ १८ ॥ शरदादेरन्त्यव्यञ्जनस्य अत् भवति । शरद् सरओ। भिषक् भिसओ । शरद् इत्यादि शब्दों के अन्त्य ग्यंजन का अ होता है । उदा०-शरद् भिसओ ।
दिक प्रावृषोः सः ॥ १६ ॥ एतयोरन्त्यव्यञ्जनस्य सो भवति । दिसा । पाउसो।
(दिश् और प्रावृष् ) इन दोनों के अन्स्य व्यंजन का स होता हैं । उदा०दिसा, पाउसो। १. गिर् । धुर् । पुर् ।
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