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________________ प्राकृतव्याकरण अगलिअ ' - नेह - निवट्टाहं जोअण- लक्खु विजाउ । वरिस-सएण विजो मिलइ सहि सोक्खहँ सो ठाउ ॥ १ ॥ पंसीति किम् । समत्तु ॥ २ ॥ अङ्ग अङ्गु न मिलिउ हलि अहरे" अहरु न पत्त 1 पिअ जोअन्तिहे मुहकमलु एम्बइ सुरउ अपभ्रंश भाषा में, पुलिङ्ग में होने वाले संज्ञा के ( अन्त्य) अकार का, सि (प्रत्यय) आगे होने पर, विकल्प से ओकार होता है । उदा०- - अग लिअ ......ठाउ ॥ १ ॥ पुंलिङ्ग में होने वाले (संज्ञा ) के ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण संज्ञा पुलिङ्गी न होने पर, कार का विकल्प से ओकार नहीं होता है । उदा० ) अङ्गहिं एट्टि | ३३३ ॥ 1 --- समत्तु ॥२॥ अपभ्रंशे अकारस्य टायामेकारो भवति । जे महु दिणा दिअहडा दइएँ पवसंतेण । ताण गणन्तिएँ अंगुलिउ जज्जरि आउ नहेण ॥ अपभ्रंश भाषा में, टा ( प्रत्यय ) आगे होने पर एकार होता है । उदा० - -जे महुTT 'नहेण ॥ १ ॥ डिनेच्च ॥ ३३४ ॥ अपभ्रंशे अकारस्य ङिना सह इकार एकारश्च भवतः । सायरु उप्पर तणु धरइ तल्लइ रयणाई | सामि सुभिच्चु वि परिहरइ संमाणेड़ खलाई ॥ १ ॥ तले" घल्लइ | तान् गणयन्त्याः ( मम ४. सागरः उपरि तृगानि सुभृत्यमपि स्वामी ५. तले क्षिपति । १ ॥ शब्द में से अन्त्य ) अकार का अपभ्रंश भाषा में, ( शब्द में से अन्त्य) अकार के ( आगे आने वाले) ङि (प्रत्यय) के सह इकार और एकार होते हैं । उदा० - सायरुखलाई ॥ १ ॥ तले धल्लइ योजनलक्षमपि १. अगलित-स्नेह-निर्वृत्तानां जायताम् । वर्षशतेनापि यः मिलति सखि सौख्यानां स स्थानम् ॥ १ ॥ २. अङ्ग अङ्गं न मिलितं सखि (हलि) अधरेण अधरः न प्राप्तः । प्रियस्य पश्यन्त्याः मुखकमलं एवं सुरतं समाप्तम् ॥ २ ॥ ३. ये मम दत्ता: दिवसाः दयितेन प्रवसता । Jain Education International २५९ अङ्गुल्यः जर्जरिताः नखेन ॥ १. धरति तले क्षिपति घल्लइ ) रत्नानि । परिहरति संमानयति खलान् ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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