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________________ प्राकृतव्याकरणे पैशाची भाषा में, तकार और दकार इनका त होता है । उदा० -त त ) : - भगवतीसतं । होने वाले ) अन्य आदेशों का ऐसा विधान यहाँ किया है। द ( का त ) बाध करने के इसलिए पताका, होते हैं । :- मतन" लिए तकार का वेतिसो इत्यादि लो लः ।। ३०८ ॥ पैशाच्यां लकारस्य लकारो भवति । सीलं । कुलं । जलं । सलिलं । कमलं । का रमतु । ( तकार को भी तकार होता है, ( रूप ) भी सिद्ध पैशाची भाषा में, ककार का लकार होता है । उदा० शषोः सः ।। ३०९ ॥ पैशाच्यां शषोः सो भवति । श । सोभति । सोभनं । ससी । सक्को । सङ्घोष । विसमो । विसानो । 'न कगचजादिषट्शम्यन्तसूत्रोक्तम्' ( . ३२४ ) इत्यस्य बाधकस्य बाधनार्थोयं योगः । Jain Education International २५१ www. - सीलं . . कमलं । पेशाची भाषा में, श और ष इनका स होता है । उदा०श (कास) :सोभति मङ्खी । ष ( का स ) :- विसमो विसानो । 'न कगचजा.. सूत्रोक्तं इस बाधक सूत्र का बाध करने के लिए ( प्रस्तुत ) नियम कहा हुआ है। हृदये यस्य पः || ३१० ॥ पैशाच्या हृदयशब्दे यस्य पो भवति । हितपकं । किंपि किंपि हितपके अत्थं चिन्तयमानी । पैशाची भाषा में, हृदय शब्द में य का प होता है । उदा०-हितकं... चिन्तयमानी | टोस्तु ।। ३११ ॥ पैशाच्यां टोः स्थाने तुर्वा भवति । कुतुम्बकं 'कुटुम्बकं । १. क्रम से :- शील । कुल । जल । सलिल । कमल । V शुभ् । शोभन । शशिन् । शक्त । शङ्ख ।" २. क्रम से : ३. क्रम से :- विषम । विषाण । ४. क्रम से :- हृदय-क । कं अपि के अपि हृदय के अर्थं चिन्तयन्ती । ५. कुटुम्ब - क । For Private & Personal Use Only 400 www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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