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________________ प्राकृतव्याकरणे कहा है ? ( कारण अकार छोड़कर अन्य स्वर के आगे दे नहीं होता है । उदा०-- :) वसुआदि "भोदि । भविष्यति सिः || २७५ ।। शौरसेन्यां भविष्यदर्थे विहिते प्रत्यये परे स्सिर्भवति । हिस्साहामपवादः । भविस्सिदि । करिस्सिदि । गच्छिस्सिदि । शौरसेनी भाषा में, भविष्यकालार्थी ऐसा कहा हुआ प्रत्यय ( धातु के ) आगे होने पर स्सि होता है । ( भविष्यकाल में ) हिस्सा ( सूत्र ३.१६८ देखिए ) और हा ( सूत्र ३·१६७ देखिए ) होते हैं, इस नियम का अपवाद प्रस्तुत नियम है । उदा०-भबिसिदिगच्छिस्सिदि । अतो डसेर्डादो-डादृ ।। २७६ ॥ अतः परस्य ङसेः शौरसेन्यां आदो आदु इत्यादेशौ डितौ भवतः । दूरादो' य्येव । दूरादु । २३९ शौरसेनी भाषा में ( शब्द के अन्त्य ) अकार के आगे आने वाले ङसि प्रत्यय को fe आदो और डिन् आदु ऐसे आदेश होते हैं । उदा०-दूरादु । - दूरादो इदानीमो दार्णि ॥ २७७ ॥ शौरसेन्यामिदानीमः स्थाने दाणि इत्यादेशो भवति । अनन्तरकरणीयं आणवेदु अय्यो । व्यत्ययात् प्राकृतेपि । अन्नं दाणि वोहि । शौरसेनी भाषा में, इदानीम् के स्थान पर दाणि ऐसा आदेश होता है । उदा०-अनन्तर· ···अय्यो | (और) व्यत्यय ( सूत्र ४*४४७ देखिए ) होने के कारण, प्राकृत में भी ( दाणि शब्द दिखाई देता है । उदा० - - ) अन्नं दाणि बोहि । तस्मात्ताः ॥ २७८ ॥ शौरसेन्यां तस्माच्छब्दस्य ता इत्यादेशो भवति । ता जाव पविसामि । ता अलं एदिणा माणेण - शौरसेनी भाषा में, तस्मात् शब्द को ता ऐसा आदेश होता है । ता जाव " माणेण । मोन्त्याण्णो वेदेतोः ।। २७९ ।। १. क्रम से: - - दूरात् एव दूरात् । २. अनन्तरकरणीयं इदानीं आज्ञापयतु आर्य: । ३. अन्यं इदानीं बोधिम् । ४. क्रम सेः -- तस्मात् यावत् प्रविशामि । तस्मात् अलं एतेन मानेन । Jain Education International For Private & Personal Use Only उदा०- www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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