SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ चतुर्थः पादः क्त्व इय-दूणौ ।। २७१॥ शौरसेन्यां क्त्वा प्रत्ययस्य इय दूण इत्यादेशौ वा भवतः । भविय' भोदूण । हविय होदूण । पढिय पढिदूण। रमिय रन्दूण। पक्षे । भोत्ता' : होत्ता। पढित्ता । रन्ता। शौरसेनी भाषा में, क्त्वा प्रत्यय को इय और दूण ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं। उदा:--भविय... रन्दूण । (विकरुप--) पक्षमें:--भोत्ता...... "रन्ता । __ कृगभो डडुअः ॥ २७२ ॥ आभ्यां परस्य क्त्वा प्रत्ययस्य डित् अडअ इत्यादेशो वा भवति । कडअ । गडुअ । पक्षे । करिय करिदूण । गच्छिय गच्छिदूण । (चौरसेनी भाषा में, कृ और गम्) इन धातुओं के आगे आनेवाले क्त्वा प्रत्यय को डित् अड्डअ ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०--कडुम, गडुअ । ( बिकल्प-- ) पक्षमें:--करिय..."गच्छिदूण । दिरिचेचोः ॥ २७३ ॥ त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्य स्येचेचौ [ ३.१३६ ] इति विहितयो रिचेचोः स्थाने दिर्भवति । वेति निवृत्तम् । नेदि । देदि । भोदि । होदि । ( शौरसेनी भाषा में ), 'त्यादी.....'चेची' सूत्र से कहे हुए इच् और एच् इन प्रत्ययों के स्थान पर दि होता है । (इस सत्र में) वा (=विकल्प) शब्द की निवृत्ति हुई है । उदा०- -नेदि"होदि ।। अतो देश्च ।। २७४ ॥ अकारात् परयो रिचेचोः स्थाने देश्चकाराद् दिश्च भवति । अच्छदे अच्छदि। गच्छदे गच्छदि। रमदे रमदि। किज्जदे किज्जदि । अत इति किम् । वसुआदि । नेदि । भोदि । ( शौरजी भाषा में, धातु के अन्त्य ) अकार के आगे आने वाले इच् और एच प्रत्ययों के स्थान पर दे, और ( सत्र में से ) चकार के कारण दि होते हैं । उदा.-- अच्छेद ...... किग्जदि । अकार के आगे ( आने वाले इच् और एच् के ) ऐसा क्यों १. /भू। २. V हो, हव । ३. /पठ् । ४./ रम् । ५. नी। ६. /दा । ७. भू । ८. /हो । ९. V आम् (सूत्र ४२१५ देखिए)। १०. /रम् । ११. क्रियते । १२. Vउद्वा । सुत्र ४.११ देखिए) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy