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प्राकृतव्याकरणे
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ना वा कर्मभावे व्वः क्यस्य च लुक ॥ २४२ ॥ च्यादीनां कर्मणि भावे च वर्तमानानामन्ते द्विरुक्तो वकारागमो वा भवति, तत्सन्नियोगे च क्यस्य लुक् । चिव्वइ चिणिज्जइ । जिव्वइ जिणिज्जइ । सुब्वइ सुणिज्जइ । हुब्वइ हुणिज्जह । थव्वइ थणिज्जइ। लुब्बाइ लुणिज्जइ । पुव्वइ पुणि ज्जइ। धव्वइ । धुणिज्जइ। एवं भविष्यति। चिव्विहिइ । इत्यादि।
कर्मणि और भावे ( रूपों में ) होने वाले चि इत्यादि ( यानी चि, जि, श्रु, हु, स्त, लू, पू धू इन ) धातओं के अन्त में द्विरुक्त वकार का ( यानी व्व का आगम विकल्प से होता है, और उस ( ब ) के सान्निध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है। उदा-चिव्वइ. ."घुणिनइ। इसी प्रकार ही भविष्य काल में ( रूप होते हैं । उदा०-) चिन्विहिइ, इत्यादि ।
म्मश्चेः ।। २४३ ॥ चिगः कर्मणि भावे च अन्ते संयुक्तो मो वा भवति, तत्सन्नियोगे क्यस्य च लुक । चिम्मइ । चिव्वइ । चिणिज्जइ भविष्यति । चिम्मि हिइ । चिव्वि हिई । चिणिहिइ।
कर्मणि और भावे ( रूपों में ) होने वाले चि ( धातु ) के अन्त में संयुक्त म ( = म्म ) विकल्प से आता है, और उस (म्म ) के सान्निध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है। उदा -चिम्म... ... चिणिज्जइ । भविष्यकाल में ( उदा०-) :-चिम्मिहिइ... .."चिणिहिइ ।
हन्खनोन्त्यस्य ।। २४४ ॥ अनयोः कर्म भावेन्त्यस्य द्विरुक्तो मो वा भवति, तत्सन्नियोगे क्यस्य च लुक् । हम्मइ हणिज्जइ । खम्मइ खणिज्जइ। भविष्यति। हम्मिहिइ । खम्मिहिइ खणिहिइ। बहुलाधिकाराद्धन्तेः कर्त-यपि । हम्मइ हन्तीत्यर्थ । क्वचिन्न भवति । हन्तव्वं । हन्तूण । हओ।
कर्मणि और भावे ( रूपों में ) होने वाले हन् और खन् इन धातुओं के अन्त में द्विरुक्त म ( = म्म ) विकल्प से आता है, और उस ( म्म ) के सान्निध्य में क्य ( प्रत्यय ) का लोप होता है। उदा०-हम्मइ . . खणिजइ । भविष्य काल में ( उदा.-):-हम्मिहिइ . . 'खाणि हिइ। बहुल का अधिकार होने से, हन्ति ( हन ) धातु के कर्तरि रूप में भी ( ऐसा म्म आता है। उदा.- ) हम्मइ यानी हन्ति ( = वध करता है ) ऐसा अर्थ है । क्वचित् ( ऐसा म्म ) नही होता है। उदा०-हन्तव्वं.... .."हो ।
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