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प्राकृतण्याकरणे
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भव ( उपसर्ग ) के आगे होनेवाले काश् धातु को वास ऐसा आदेश होता है। उदा०-भोवासइ ।
संदिशेरप्पाहः ॥ १८० ॥ सन्दिशतेप्पाह इत्यादेशो वा भवति । अप्पाहइ । सन्दिसइ।
संदिशति ( /संदिश ) धातु को अप्पाह ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-अप्पाहइ । (विकस्प-पक्ष में):-संदिसइ । दृशो निअच्छापेच्छावयच्छावयज्म-वज-सव्वव-देक्खौअक्खा
वक्खावअक्ख-पुलोअ-पुलअ-निआवआस-पासाः॥१८१॥ दृशेरेते पश्चदशादेशा भवन्ति । निअच्छइ। पेच्छइ। अवयच्छइ । अवयज्झइ । वज्जइ। सव्ववइ । देक्खइ। ओअक्खइ। अवक्खइ । अवअक्खइ। पुलोएइ । पुलएइ। निअइ। अवमासइ । पासइ। निज्झाअइ । इति तु निध्यायतेः स्वरादत्यन्ते भविष्यति ।
दृश् धातु को निअच्छ, पेच्छ, अवयच्छ, अवयज्झ, वज्ज, सम्बव, देक्ख, ओअक्ख, भवक्ख, अबअक्स, पुलोअ, पुलअ, निअ, अवास जोर पास ऐसे ये पंद्रह आदेश होते हैं। उदा.- निअच्छइ....."पासइ । मिज्झाअइ ( यह रूप ) मात्र निध्यायति में से (अन्त्य) स्वर के आगे (यामी निध्य-निज्झा के आगे) अ अन्त में आने पर होगा।
स्पृशः फास-फंस-फरिस-छिव-छिहालुवालिहाः ॥ १८२॥
स्पृशतेरेते सप्त आदेशा भवन्ति । फासइ। फंसइ । फरिसइ । छिवइ । छिहइ। आलुङ्खइ । आलिहइ।
स्पृशति ( 1 स्पृश् ) धातु को फास, फंस, फरिस, छिव, छिह, आलुङ्ख भोर मालिह ऐसे ये सात आदेश होते हैं । उदा०-फासइ.::..'मालिहइ ।
प्रविशे रिः॥ १८३ ॥ प्रविशेः रिअ इत्यादेशो वा भवति । रिअइ । पविसइ।।
प्रविश् धातु को रिअ ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-रिभइ । (विकल्प-पक्ष में):-पविसइ ।
प्रान्मृशमृषोम्ह सः॥ १८४ ॥ प्रात् परयोमृशतिमुष्णात्योम्हु सं इत्यादेशो भवति । पम्हुसइ । प्रमृशति प्रमुष्णाति वा।
प्र ( इस उपसर्ग ) के आगे होनेवाले मृशति ( V मृश् ) और मुष्णाति (Vमृष्) इन धातुओं को म्हुस ऐसा आदेश होता है। उदा०-पम्हुसइ ( यानी ) प्रमशति अथवा प्रमुष्णाति ऐसा अर्थ है ।
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