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प्राकृतव्याकरणे
विश्रमेणिव्वा ॥ १५९॥ विश्राम्यतेणिव्वा इत्यादेशो वा भवति । णिव्वाइ। वीसमइ ।
विधाम्यति (/विश्रम् ) धातु को णिब्वा ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०-णिव्याइ । ( विकल्प-पक्ष में ) :-- वीसमइ ।
आक्रमेरोहावोत्थारच्छन्दाः ॥ १६० ॥ माक्रमतेरेते त्रय आदेशा वा भवन्ति । ओहावइ । उत्थारइ। छुन्दइ । अक्कमइ।
आक्रमति ( /आक्रम् ) धातु को ओहाव, उत्थार और छुन्द ऐसे ये तीन मादेश विकल्प से होते हैं। उदा० - ओहावइ'.. . छुन्दइ। (विकल्प-पक्ष में):अक्कमइ । भ्रमेष्टिरिटिल्लाढुण्दुल्ल-ढण्ढल्ल-चक्कम्म-भम्मड-भमड-भमाड-तलअण्ट
झण्ट-झम्प-भुम-गुम-फुम-फुस-दुम-दुस-परी-पराः ॥१६१॥ भ्रमेरेतेष्टादशादेशा वा भवन्ति । टिरिटिल्ल । ढुण्ढुल्लइ । ढण्ढल्लइ । चक्कम्मइ । भम्मडइ। भमाडइ। तल अण्टइ। झण्टइ। झम्पइ । भुमइ । गुमइ । फुमइ । फुसइ । ढुमइ । ढुसइ । परीइ । परइ । भमइ।।
प्रम् धातु को टिरिटिल्ल, ढुण्ढुल्ल, ढण्ढल्ल चक्कम्म, भम्मड, भमड, भमाड, तलमण्ट, झण्ट, सम्प, भुम, गुम, फुम, फुस, ढुम, ढुस, परी, और पर ऐसे ये अठारह आदेश विकल्प के होते हैं। उदा०-टिरिटिल्लइ... .. 'परइ । ( विकल्प-पक्ष में ):-अमइ ।
गमेरई-अइच्छाणुवजावजसोक्कुसाक्कुस-पच्चड्ड-पच्छन्दणिम्मह-णी-णीण-णीलुक्क-पदअ-रम्भ-परिभल्ल-बोल
परिअल-णिरिणास-णिवहावसेहावहराः ॥ १६२ ॥ गमेरेते एकविंशतिरादेशा वा भवन्ति । अईइ। अइच्छइ। अणुवज्जइ। अवज्जसइ । उक्कुसइ । अक्कुसइ । पचड्डइ । पच्छन्दइ। णिम्महइ । णीइ। णीणइ। णोलुक्कइ। पदअइ। रम्भइ। परिअल्लइ। वोलइ। परिअलइ। णिरिणासइ । णिवहइ। अवसेहा । अवहरह । पक्षे । गच्छई । हम्मइ णिहम्मइ णीहम्मइ आहम्मइ पहम्मइ इत्येते तु हम्म गतावित्यस्यैव भविष्यन्ति ।
गम् धातु को अई, अइच्छ, अणुबज्ज, अवज्जस, उक्कुस, अक्कुस, पच्चड्ड, पच्छन्द; णिम्मह, णी, णीण, णीलुक्क, पदम, रम्भ, परिअल्ल, बोल, परिअल, णिरि
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