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________________ प्राकृतव्याकरणे विल धातु को झङ्ख और वडबड ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०शङ्खइ, वढवडइ । ( विकल्प - पक्ष में ) :- बिलबइ | लिपो लिम्पः ॥ १४९ ॥ लिपतेलिम्प इत्यादेशो भवति । लिम्पइ | लिए धातु को लिम्प ऐसा आदेश होता है । उदा०-- लिम्पइ | १५० ।। गुप्येविर - णडौ । गुप्तेरेतावादेशौ वा भवतः । विरइ । बडइ | पक्षे । गुप्पइ । गुप्त ( V गुप्) धातु को विर और गड ऐसे ये आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०-- बिरड, डड़ । ( विकल्प - ) पक्ष में :-- :--गुष्पइ 1 २११ कपोवहो णिः ।। क्रपेः अवह इत्यादेशो ण्यन्तो भवति । अवहावेइ । कृपां करोतीत्यर्थः । कृप् ( क्रपि ) धातु को प्रेरक प्रत्यय से अन्त होने वाला अबह ( यानी अवहावे ) ऐसा आदेश होता है । उदा०--- अवहावे३ ( यानी ) कृपा करता है, ऐसा अर्थ है । १५१ ।। प्रदीपेस्तेअव-सन्दुम-सन्धुक्काव्त्ताः ॥ १५२ ॥ प्रदीप्यतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति । ते अवइ । सन्दुमइ । सन्धुक्कइ । अत्तइ | पलीदइ । प्रदीप्यति ( / प्रदीप ) धातु को तेअत्र, सन्दुम, सन्धुक्क और अब्भुत ऐसे ये - चार आदेश विकल्प से होते हैं । उदा०-- - ते अब इ अब्भुत्तइ । ( बिकल्प - पक्ष में ) : -- पलीवइ । लुभेः संभावः ।। १५३ ।। लुभ्यतेः सम्भाव इत्यादेशो वा भवति । सम्भावइ । लुम्भइ । लुभ्यति ( Vलुभ् ) धातु को सम्भाव ऐसा आदेश विकल्प से होता है । उदा०सम्भावइ । ( विकल्प - पक्ष में ) : -- लुब्भ इ । क्षुभेः खउर-पड्डौ || १५४ ।। Jain Education International क्षुभेः खउर पड्डुह इत्यादेशौ मा भवतः । खउरइ । पड्डुहइ । खभइ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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