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________________ प्राकृतव्याकरणे समो गलः ॥ ११३ ॥ सम्पूर्वस्य घटतेगल इत्यादेशो वा भवति । संगलइ । संघडइ । सम् ( उपसर्ग ) पूर्व में होने वाले धटति (घट् ) धातु को गल ऐसा आदेश विकम्प से होता है । उदा.--संगलइ । ( विकल्प पक्ष में):-संघडइ । हासेन स्फुटेमुरः ।। ११४ ।।। हासेन करणेन यः स्फुटिस्तस्य मुरादेशो वा भवति । मुरइ। हासेन स्फुटयति। हास ( = हास्य ) इस करण से युक्त होने वाला जो स्फुट ( स्फुटि ) धातु, उसको मुर आदेश विकल्प से होता है। उदा० --मुरइ ( यानी ) हासेन स्फुटति (ऐसा अर्थ है )। मण्डेश्चिश्व-चिश्चअ-चिचिल्ल-रोड-टिविडिक्काः ॥११॥ मण्डेरेते पश्चादेशा वा भवन्ति । चिञ्चइ । चिश्चअइ । चिचिल्लइ । रीडइ। टिविडिक्कइ । मण्डइ। मण्डू ( मण्डि ) धातु को चिञ्च, चिञ्चअ, चिचिल्ल, रोड और टिविडिक्क ऐसे ये पांच आदेश विकल्प से होते हैं। उदा०-चिञ्चइ... ...टिविडिक्कइ । ( विकल्प-पक्ष में :-) मण्ड। - तुडेस्तोड-तुट्ट-खुट्ट-खुडोक्खुडाल्लुक्क-णिलुक्क - लक्कोल्लूराः ।। ११६ ॥ तुडरेते नवादेशा वा भवन्ति । तोडइ । तुट्टइ । खुट्टइ । खुडइ । उक्खुडइ । उल्लक्कइ । णिलुक्कइ । लुक्कइ । उल्लूरइ । तुडइ। तुर ( तुडि ) धातु को ( तोड, तट्ट, खुटु, खुड, उक्खुड, उलुक्क, णिलुक्क, लुक्क और उल्लूर ऐसे ) ये नौ आदेश विकल्प से होते हैं। उदा०-तोडइ... .. उल्लूरक । (विकल्प-पक्ष में ) :-तुडइ । घूर्णो घुल-घोल-घुम्म-पहल्लाः ॥ ११७ ॥ घूर्णेरेते चत्वार आदेशा भवन्ति । घुलइ । घोलइ । घुम्मइ । पहल्लइ। धूण् (धूणि ) धातु को (धुल, घोल, घुम्म और पहल्ल ऐसे ) ये चार आदेश होते है । उदा०-घुलइ::" .. पहल्लइ । विवृतेढंसः ॥ ११८॥ विवृतेढे स इत्यादेशो वा भवति । ढंसइ । विवट्टइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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