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________________ चतुर्थः पादः समारचेरुवरुत्थ-सारव समार केलायाः ॥ ६५ ॥ समारचेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति । उवहत्थइ । सारवइ । समारइ । केलायइ । समारयई । समारच् ( समारचि ) धातु को ( उवहत्य, सारव, समार और केलाय ऐसे ) ये चार आदेश विकल्प से होते हैं । उदा० -- उवहृत्थइ केलायड । ( विकल्प पक्ष में ) :-- समारयइ । २०२ सिचेः सिश्वसम्पौ ॥ ९६ ॥ सिञ्चतेरेतावादेशौ वा भवतः । सिचाइ । सिम्पइ | सेअइ | सिञ्चति ( सिच् ) धातु को ( सिञ्च और सिम्प ऐसे ) ये आदेश विकल्प से होते हैं | उदा० -सिव इ, सिम्पइ । ( विकल्प पक्ष में ) : - अइ | प्रच्छः पुच्छः ॥ ९७ ॥ पृच्छेः पुच्छादेशो भवति । पुच्छइ । पृच्छ (प्रच्छ् ) धातु को पुच्छ आदेश होता है । उदा०-पुच्छइ । गर्जेर्बुक्कः ॥ ९८ ॥ गर्जतेर्बुक्क इत्यादेशो वा भवति । बुक्कइ । गज्जइ । गति ( ग ) धातु को बुक्क ऐसा आदेश विकल्प से होता है । बुक्कइ ( विकल्प - पक्ष में :- - ) गज्जइ । वृषे ढिक्कः ।। ९९ ॥ वृषकर्तृ कस्य गर्जेढिक्क इत्यादेशो वा भवति । ढिक्कइ । वृषभो गर्जति । वृष -कर्तृक गज् ( गजि ) धातु को ढिक्क आदेश विकल्प से होता है । उदा०ढिक्कइ ( यानी ) वृषभ ( बैल ) गर्जना करता है ( ऐसा अर्थ है ) । = Jain Education International राजेरग्घ-छज-सह-रीर - रेहाः ।। १०० ।। राजेरेते पञ्चादेशा वा भवन्ति । अग्घइ । छज्जइ । सहइ । रीरइ । रेहइ । रायइ । राज् ( राजि ) धातु को ( 'अग्ध, छज्ज, आदेश विकल्प से होते हैं । उदा० - अग्घइ रायइ । --122 सह, शेर और रेह ऐसे ) ये पांच रेहइ । ( विकल्प पक्ष में :-- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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