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________________ प्राकृतव्याकरणे १९९ प्रसरतेर्गन्धविषये महमह इत्यादेशो वा भवति । महमहइ मालई । मालईगन्धो पसरइ । गन्ध इति किम् । पसरइ। गन्ध-विषयक प्रसरति ( V+ सृ) धातु को महमह ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-महमहइ मालई । ( विकल्प पक्ष में :-) मालई गन्धो पसरइ । गन्धविषयक ( प्रसृ धातु ) ऐसा क्यों कहा है .. ...? ( कारण गन्ध विषयक प्रसृ धातु न हो, तो महमह आदेश नहीं होता है । उदा०-) पसरइ। निस्सरेणी-हर-नील-धाड-वरहाडाः ॥ ७६ ॥ निस्सरतेरेते चत्वार आदेशा वा भवन्ति । णीहरइ। नीलइ। धाडइ । वरहाडई । नीसरइ। निस्सरति ( निस्सृ) धातु को ( णोहर, नील, धाड और वरहाड ऐसे ) ये चार आदेश विकल्प से होते हैं। उदा.-णीहरइ... .''वरहाडइ। (विकल्प-पक्ष में :-) नीसरइ। जाग्रेजग्गः ॥ ८०॥ जागर्तेर्जग्ग इत्यादेशो वा भवति । जग्गइ । पक्षे । जागरइ । जागति (जागृ ) धातु को जग्ग ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०जग्गइ । ( विकल्प- ) पक्ष में :-जागरइ । व्याप्रेराअड्डः ॥ ८१ ॥ व्याप्रियते राअड्ड इत्यादेशो वा भवति । आअड्डेइ । वावरे । व्याप्रियति (Vब्यापू) धात को आ अड्ड ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा.-आ अड्डेइ । ( विकल्प-पक्ष में ) :- वावरेइ। ___ संघृगेः साहर-साहट्टो ॥ ८२॥ संवृणोतेः साहर साहट्ट इत्यादेशौ वा भवतः । साहरइ। साहट्टइ। संवर। संवृणोति ( /सम्+वृ) धातु को साहर और साहटूट ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा.-साहरइ, साहट्टइ ( विकल्प-पक्ष में :-) संवरइ। आहङः संनामः ॥ ८३ ॥ आद्रियतेः संनाम इत्यादेशो वा भवति । संनामइ । आदरइ । आद्रियति ( /आ + ६) धातु को संनाम ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०--संनामइ । विकल्प-पक्ष में :-) आदरइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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