SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ तृतीयः पादः भविष्यकालार्थ में कहा हुआ प्रत्यय आगे होने पर, उस (प्रत्यय) के ही पूर्व पीछे 'हि' ( यह अक्षर ) प्रयुक्त करे । उदा० --होहिड ( यानी ) भविष्यति किंवा भविता (= होगा) ऐसा अर्थ है। इसी प्रकार:---होहिन्ति..... काहिइ । मिमोमुमे स्सा हा न वा ॥ १६७॥ भविष्यत्यर्थे मिमोमुमेषु तृतीयत्रिकादेशेषु परेषु तेषामेवादी 'स्सा हा' इत्येतौ वा प्रयोक्तव्यौ। हेरपवादौ । पक्षे हिरपि । होस्स्सामि होहामि । होस्सामो होहामो होस्सामु होहामु होस्साम होहाम। पक्षे । होहिमि । होहिमु होहिम। क्वचित्तु हा न भवति । हसिस्सामो हसिहिमो। भविष्यकालार्थ में ( होनेवाले ) मि, मो, मु. और म ऐसे तृतीय त्रिक के आदेश आगे होने पर, उनके ही पूर्व पीछे स्सा और हा ऐसे ये ( शब्द ) विकल्प से प्रयुक्त करे। ( भविष्यकालार्थी प्रत्यय के पीछे ) "हि' शब्द ) प्रयुक्त करे ( सूत्र ३.१६६) नियम का अपवाद ( यहां कहा है)। ( विकल्प-- ) पक्ष में 'हि' भी प्रयुक्त करे । उदा०-होस्सामि... " होहाम। ( विकल्प- ) पक्ष में---होहिमि... .."होहिम । परंतु क्वचित् 'हा' (शब्द नहीं आता है। उदा०–हसिस्सामो, हसिहिमो । मोमुमानां हिस्सा हित्था ॥ १६८ ॥ धातोः परौ, भविष्यति काले मोमुमानां स्थाने, हिस्सा हित्था इत्येतौ वा प्रयोक्तव्यौ। होहिस्सा होहित्था। हसिहिस्सा हसिहित्था। पक्षे। होहिमो होस्सामो होहामो। इत्यादि। धातु के आगे भविष्यकाल में मो, मु और म इनके स्थान पर हिस्सा और हित्पा ऐसे ये (शब्द) विकल्प से प्रयुक्त करे । उदा--होहिस्साहसि हित्था । (विकल्प-) पक्षमें-होहिमो.....होहामो, इत्यादि। मेः स्सं ॥ १६९ ।। धातोः परो भविष्यति काले म्यादेशस्य स्थाने स्सं वा प्रयोक्तव्यः । होस्सं । हसिस्सं । कित्त' इस्सं । पक्षे । होहिमि होस्सामि होहामि । कित्त' इहिमि। धातु के आगे भविष्यकाल में मि ( प्रत्यय ) के आदेश के स्थान पर (सूत्र ३.१६७ देखिए ) स्सं ( शब्द ) विकल्प से प्रयुक्त करे। उदा.-होस्सं.... .. कित्तइस्सं । (विकल्प-) पक्षमें:-होहिमि ...."कित्तइहिमि । . कृदो हं॥१७० ॥ करोते ददातेश्च परो भविष्यति विहितस्य म्यादेशस्य स्थाने हं वा १. कोत्। २. 1/ । ३. /दा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy