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तृतीयः पादः
अस्मि ( यह मैं हैं ) ऐसा अर्थ होता है; गय... .."म्ह। सूत्र में मुकार ( इस आदेश ) का निर्देश न होने से, । उसका ) प्रयोग होता ही नहीं, ऐसा जाना है। (विकल्प-) पक्ष में :--अस्थि... .. अम्हो । ( शंका :-) पक्ष्म '' .."म्ह!' सूत्र के अनुसार, ( स्म. इस रूप के ) सिद्धावस्था में म्ह आदेश के होते 'म्हो' यह रूप सिद्ध होता है । ऐसा नहीं कहा जा सकता क्या ?)। ( उत्तर :-) यह सच है। तथापि प्रत्यय लगाकर ( होने वाले रूपों के ) नियम कहते समय, प्रायः (शब्द की) साध्यमान अवस्था स्वीकृत की जाती है; अन्यथा वच्छण... .. के इत्यादि रूप सिद्धि क लिए सूत्र कहने की जरूरत नहीं थी, ऐसा होगा।
अस्थिस्त्यादिना ॥ १४८ ॥ अस्तेः स्थाने त्यादिभिः सह अत्थि इत्यादेशो भवति । अत्थि सो । अत्थि ते । अत्थि तुमं । अत्थि तुम्हे । अत्थि अहं । अत्थि अम्हे।
ति इत्यादि ( धातुओं को लगने वाले ) प्रत्ययों के सह अस् (धातु ) के स्थान पर अत्थि ऐसा आदेश होता है । उदा.-अस्थि... ."अम्हे ।
णेरदेदावावे ॥ १४९ ।। णेः स्थाने अत् एत् आव आवे एते चत्वार आदेशा भवन्ति । 'दरिसइ । कारेइ करावइ करावेइ । हासेइ हसावइ हसावेइ । उव सामेइ उवसमावइ उवसमावेइ। बहुलाधिकारात् क्वचिदेनास्ति । 'जाणावेइ। क्वचिद् आवे नास्ति । पाएइ। भावेइ।
णि ( इस प्रत्यय ) के स्थान पर अ, ए, आव, और आवे ( ऐसे ) ये चार आदेश होते हैं। उदा.-उवसमावेइ । बहुल का अधिकार होने से, क्वचित् ए ( आदेश ) नहीं होता है । उदा०-जाणावेइ । क्वचित्आवे ( आदेश ) नहीं होता है । उदा०-पाएइ, भावेइ ।।
गुर्वादेरविर्वा ।। १५० ।। गुर्वादेणेः स्थाने अवि इत्यादेशो वा भवति । शोषितम् सोसविमं सोसि। तोषितम् तोसविअं तोसिअं।
दीर्घ स्वर आदि ( स्थान में ) होनेवाले धातुओं को लगनेवाले णि ( इस प्रत्यय ) के स्थान पर अवि ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा . शोपितम् ... तोसि। १. /दृश् ।
२. / उप+ शम् । ३. जाण धातु ज्ञा धातु आदेश है ( सूत्र ४.७ देखिए )। ४. क्रमसेः --पा । भू ।
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