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प्राकृतव्याकरणे
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भवत इति विपरीतावधारण निषेधार्थः । तेनाकारान्ताद् इच् सि इत्येतावपि सिद्धो । हस हससि । वेवइ वेवसि ।
धातुओं को लगनेवाले प्रत्ययों के स्थान पर ( ऊपर सूत्र ३.१३९-४० में ) जो एज् और से ऐसे ये ( दो ) आदेश कहे हुए हैं, वे केवल अकारान्त धातुओं के आगे ही होते हैं, अन्य (स्वरान्त धातुओं) के आगे नहीं होते हैं। उदा० - हसए" करसे । अकारान्त धातुओं के आगे ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण अन्य स्वरान्त धातुओं के आगे ये दो आदेश नहीं भाते हैं । उदा● ) ठाइ होसि । अकारान्त धातुओं के आगे ही एच् और से ( ये आदेश ) होते हैं ऐसे विपरीत निश्चय ( = अवधारण ) का निषेध करने के लिए ( सूत्र में अतः शब्द के आगे : एव-कार ( एव शब्द ) प्रयुक्त किया है । इसलिए अकारान्त धातुओं के आगे इच् और सि ये दो भी ( आदेश ) सिद्ध होते हैं । उदा० - इसइ वेबसि ।
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सिनास्तेः सिः ।। १४६ ॥
सिमा द्वितीय त्रिकादेशेन सह अस्ते : सिरादेशो भवति । निठुरो जं सि । सिनेति किम् । से आदेशे सति अत्थि तुमं ।
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( धातुओं को लगने वाले प्रत्ययों में से ) द्वितीय त्रिक में से ( = तीन के समूह में से ) ( आद्यवचन के ) सि इस आदेश के सह अस् ( धातु ) को सि ऐसा आदेश होता है । उदा० - निठुरो जं सि सि ( इस आदेश ) के सह ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण सि आदेश न होने पर, से आदेश होते समय अस्थि तुमं ( ऐसा प्रयोग होता है ) ।
मिमोहिम्होम्हा वा ॥ १४७ ॥
अस्तेर्धातोः स्थाने मि मो म इत्यादेशैः सह यथासंख्य म्हि म्हो म्ह इत्यादेशा वा भवन्ति । एस म्हि । एषोस्मीत्यर्थः । गयर म्हो । गय' म्ह | मुकारस्याग्रहणादप्रयोग एव तभ्येत्यवसीयते । पक्षे । अत्थि अहं । अस्थि अहे । अस्थि अम्हो | ननु च सिद्धावस्थायां पक्ष्मश्मष्मस्मह मां म्हः ( २.७४ ) इत्यनेन म्हादेशे म्हो इति सिध्यति । सत्यम् । कि तु विभक्तिविधौ प्रायः साध्य मानावस्थाङ्गीक्रियते । अन्यथा बच्छेण वच्छेसु सब्बे जे ते के इत्याद्यर्थं सूत्राण्यनारम्भणीयानि स्युः
अस् धातु के स्थान पर, मि, मो और म इन आदेशों के सह अनुक्रम से म्हि, म्हो, और म्ह ऐसे आदेश विकल्प से होते हैं । उदा० - एस म्हि ( यानी ) एषः १. निष्ठुर: यद् असि ।
२. गताः स्मः ।
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