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________________ तृतीय: पाद: तु तुव तुम तुह-तुमा ङौ ॥ १०२ ॥ युष्मदो ङौ परत एते पञ्चादेशा भवन्ति । ङेस्तु यथा प्राप्तमेव । तुम्मि | तुमि । तुमम्मि । तुहम्मि । तुब्भम्मि ! भो म्हन्झौ वेति वचनात् तुम्हम्मि तुज्झमि । इत्यादि । ( प्रत्यय ) आगे होने पर, युष्मद् ( सर्वनाम ) को तु, तुम्भ ( ऐसे ) ये पाँच आदेश होते हैं । ङि ( प्रत्यय ) के देखिए ) हमेशा की तरह होते ही हैं । उदा तुमम्मि झो बा' इस वचन के अनुसार, तुम्हम्मि और तुज्झम्मि; इत्यादि । सुपि ।। १०३ ।। युष्मदः सुपि परतः तु तुव - तुम तुह-तुम्भा भवन्ति । तुसु । तुवेसु । तुमेसु । तुहेसु । तुब्भेसु । ब्भो म्हज्झौ वेति वचनात् तुम्हे तुज्झेसु । केचित्तु सुप्येत्वविकल्पमिच्छन्ति । तन्मते तुवसु तुमसु तुहसु तुब्भसु तुम्हस् तुज्झस् । तुब्भस्यात्वमपीच्छत्यन्यः । तुम्भासु तुम्हासु तुझासु । सुप प्रत्यय ) आगे होने पर, युष्मद् ( सर्वनाम ) को सु, लुख, तुम, तुह मौर तुम ( ऐसे ये पांच आदेश ) होते हैं। उदा० तुसु तुब्भेसु । 'भो म्हज्झो वा' वचन के अनुसार, तुम्हेसु और तुज्झेसु ( ये रूप होते हैं पर ( उसके पिछले अ का ) ए विकल्प से होता है, हैं; उनके मतानुसार, तुवसु तुज्झसु ( ऐसे रूप ) । सुप् ( प्रत्यय ) आगे होने ऐसा कुछ ( वैयाकरण ) मानते होंगे ) ( सु प्रत्यय के पूर्व ) तुब्भ में ( अन्त्य अ का ) आ होता है, ऐसा दूसरा कोई ( वैयाकरण ) मानता है; ( उसके मतानुसार ) तुब्भासु "तुज्झासु ( ऐसे रूप होंगे ) । भो म्हज्झौ वा ॥ युष्मदादेशेषु यो द्विरुक्तो भस्तस्य म्ह ज्झ १०४ ॥ इत्येतावादेशौ वा भवतः । पक्षे १५८ स एवास्ते तथैव चोदाहृतम् = ब्भ ) कहा युष्मद् ( सर्वनाम ) को ( कहे हुए) आदेशों में से जो द्विरुक्त भ ( हुआ है, उसको म्ह और ज्झ ऐसे ये (दो) आदेश विकल्प से होते हैं । ( विकल्प - ) पक्ष में: -- वह (भ) वैसा ही रहता है । और तदनुसार (ऊपर) उदाहरण दिये हैं । अस्मदो म्मि अम्मि अम्हि हं अहं अहयं सिना ॥ १०५ ॥ अस्मदः सिना सह एते षडादेशा भवन्ति । अज्ज म्मि हासिआ ' मामि तेण । उन्नम न अम्मि कुविआ । अम्हि करेमि । जेण हं विद्वा । १. अद्य अहं हासिता मामि ) तेन । ३. अहं करोमि । तत्र, तुम, तुह, और आदेश ( सू० ३. तुभम्मि । 'ब्भो म्ह Jain Education International २. उन्नम न अहं कुपिता । ४. येन अहं वृद्धा ( विद्या ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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