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प्राकृतव्याकरणे
ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण सर्वनाम अकारान्त न हो, तो जस् को डित् ए आदेश नहीं होता है । उदा० -- ) सव्वाओ रिद्धीओ । जस् (प्रत्यय) को ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अन्य प्रत्ययों को ऐसा आदेश नहीं होता है । उदा.-) सब्वस्स।
ः स्सिम्मित्थाः ।। ५९ ।। सर्वादेरकारात् परस्य ङः स्थाने स्सि म्मि त्थ एते आदेशा भवन्ति । सव्वस्सि सव्वम्मि सव्वत्थ । 'अन्नस्सि अन्नम्मि अन्नत्थ । एवं सर्वत्र। अत इत्येव । अमुम्मि। . सर्व, इत्यादि अकारान्त सर्वनामों के आगे आने वाले डि (प्रत्यय) के स्थान पर स्थि, म्मि और स्थ ये आदेश होते हैं। उदा.-सवस्सि" ... अन्नत्थ । इसी तरह इतर सर्वत्र ( यानी अन्य अकारान्त सर्वनामों के बारे में होता है)। अकारान्त सर्वनामों के ही ( बारे में ऐसा होता है; अन्य स्वर से अन्त होने वाले सर्वनामों के आगे डि को ऐसे आदेश नहीं होते हैं। उदा.-) अमुम्मि ।
न वानिदमेतदो हिं॥ ६० ॥ इदम्-एतद्-वर्जितात् सर्वादेरदन्तात् परस्य हिमादेशो वा भवति । सम्वहिं । अन्नहिं । कहिं । जहिं । तहिं । बहुलाधिकारात् किंयत्तद्भयः स्त्रियामपि । काहिं । जाहिं । ताहिं । बाहलकादेव कियत्तदोस्यमामि ( ३.३३ ) इति ङी स्ति। पक्षे सव्वस्सि सबम्मि सव्वत्थ । इत्यादि । स्त्रियां तु पक्षे। काए कोए । जाए जीए। ताए तीए । इदमेतद्वर्जनं किम् । इमस्सि एअस्सि।
इदम् और एसद् (ये सर्वनाम ) छोड़ कर, अन्य सर्व इत्यादि सर्वनामों के आगे आने वाले ङि ( प्रत्यय ) को हिं ऐसा आदेश विकल्प से होता है। उदा०-सहि... ..."तहिं । बहुल का अधिकार होने से, किम्, यद्, और तद् इनके स्त्रीलिंगी रूपों में भी ( हि ऐसा आदेश होता है। उदा०-) काहिं .''ताहिं । ( इस ) बहुलत्व के ही कारण, 'यित्तदोस्यमामि' सूत्र से कहा हुआ ही प्रत्यय नहीं आता है । ( विकल्प---) पक्ष में-सबस्सि .... .."सव्वस्थ, इत्यादि । स्त्रीलिंग में मात्र ( विकल्प- ) पक्ष में :--काए ... .तीए । इदम् और एतद् ( ये सर्वनाम ) छोड़ कर ऐसा क्यों कहा १. अन्य।
२. / अदस् । १. प्रा. व्या.
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