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तृतीयः पादः
पिऊसु । ( विकल्प-) पक्षमें:-पिअरा, इत्यादि । सि, अम्, और या प्रत्यय छोड़कर ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण ये प्रत्यय आगे होने पर, अन्त में उ आदेश नहीं होता है। उदा०-) सि ( आगे होने पर ):-पिआ । अम् ( आगे होने पर :-पिअरं । को ( आगे होने पर ):-पिअरा।
आरः स्यादौ ॥ ४५ ॥ स्यादौ परे ऋत आर इत्यादेशो भवति । भत्तारो भत्तारा। भत्तारं भत्तारे। भत्तारेण भत्तारेहिं । एवं डस्यादिषूदाहार्यम् । लुप्तस्याद्यपेक्षया । भत्तार'-विहिवं।
सि इत्यादि (विभक्ति प्रत्यय ) आगे होने पर, ( शब्द के अन्त्य ) ऋ को आर आदेश होता है। उदा०–भत्तारो..."भत्तारेहिं । इसी तरह ङसि इत्यादि प्रत्यय आगे होने पर उदाहरण ले। ( अन्त्य ऋ का आर होने के बाद, कुछ कारण से ) स्यादि ( यानी विभक्ति-) प्रत्ययों के लोप की अपेक्षा होते भी ( यह आर वैसाही रहता है । उदा०-) भत्तारविहिरं ।
आ अरा मातुः ।। ४६ ॥ मातृसम्बन्धिन ऋतः स्यादौ परे आ अरा इत्यादेशौ भवतः। माआ माअरा। माउ माआओ माअराउ माअराओ। मा मामरं। इत्यादि । बाहुलकाज्जनन्यर्थस्य आ देवतार्थस्तु अरा इत्यादेशः । माआए 'कुच्छीए । नमो माअराण । मातुरिद् वा ( १.१३५ ) इतीत्त्वे माईण इति भवति ।
तामुदं ( ३.४४ ) इत्यादिना उत्वे माऊए 'समन्निअं 'वन्दे इति । स्यादावित्येव 'माइदेवो । माइगणो।
सि इत्यादि ( विभक्ति प्रत्यय ) आगे होने पर, मातृशब्द से सम्बन्धित होने वाले ऋ को बा और अरा ऐसे आदेश होते हैं। उदा०-माआ... ..'माअरं, इत्यादि । बहुलत्य होने से, मा इस अर्थ में होने वाले मातृ शब्द में आ, और देवता इस अर्थ होने पर, (मातृशब्द में) अरा, ऐसा आदेश होता है। उदा०-माआए..'मा अराण । 'मातुरिद् बा' सूत्र के अनुसार, ( मातृ शब्द में ऋ का) इ होने पर, माईण ऐसा (रूप) होता है। परन्तु 'ऋतामूद०' इत्यादि सूत्र के अनुसार ( मातृ में से ऋ का ) उ होने पर 'माऊए समन्नि बन्दे', ऐसा होता है। विभक्ति प्रत्यय आगे होने पर ही ( मातृ में से ऋ को आ और अरा ये आदेश होते हैं। अन्य समय में नहीं होते हैं। उदा.-) माइदेवो, माइगणो । १. भर्तृ-विहित । २. कुक्षि । २. नमः। ४. समन्वित । ५. Vबन्द ।
६. भातृदेव । ७. मातृगण ।
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