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तृतीयः पादः
ऋकारान्त शब्दों के संबोधन में, सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, अकार ऐसा अन्तादेश ( = अन्त में अ ऐसा आदेश ) विकल्प से होता है । उदा०-हे पितः दाय । ( विकल्प - ) पक्ष में:- हे पिअरं दायार ।
नाम्न्यरं वा ।। ४० ॥
ऋदन्तस्यामन्त्रणे सौ परे नाम्नि संज्ञायां विषये अरं इति अन्तादेशो वा भवति । पितः हे पिअरं । पक्षे । हे पिअ । नाम्नीति किम् । हे कर्तः हे कत्तार' ।
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ऋकारान्त शब्दों के संबोधन में; सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, नामों के यानी संज्ञाओं के बारे में, अर्र ऐसा अन्तादेश ( = अन्त में आदेश ) विकल्प से होता है । उदा- - हे पितः "पिअरं । ( विकल्प - ) पक्षमें :- हे पिअ । संज्ञाजों के बारे में ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण ऋकारान्त शब्द संज्ञा न हो, तो अरं ऐसा अन्तादेश नहीं होता है । उदा०-- -) हे कर्तः
कसार ।
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वाप ए ॥ ४१ ॥
आमन्त्रणे सौ परे आप एत्वं वा भवति । हे माले हे महिले । अज्जिए । पज्जिए पक्षे । हे माला । इत्यादि । आप इति किम् । हे पिउच्छा । हे माउच्छा । बहुलाधिकारात् क्वचिदोत्वमपि । अम्मो भणामि " भणिए ।
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संबोधन में सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, ( उसके पिछले ) आ ( आप ) स्वर का विकल्प से ए होता है । उदा०- रे माले पज्जिए । ( विकल्प - ) पक्षमें :हे माला इत्यादि । आ (आप) का (ए होता है) ऐसा क्यों आप् न हो, तो ए नहीं होता है । उदा०- ~ ) हे पिउच्छा अधिकार होने के कारण, इस आप का ) कभी ओ भी अम्मो भणिए ।
१. कर्तृ । ३. अम्बा ।
ईदूतोह स्वः ।। ४२ ।।
आमन्त्रण सौ परे ईदृदन्तयोह्रस्वो भवति । हे नइ । हे गामणि । हे 'समणि | हे वहु । हे खलपु ।
संबोधन में सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर; ईकारान्त और ऊकारान्त संज्ञाबी का ( अन्त्य स्वर ) ह्रस्व (यानी अनुक्रम से इ और उ) होता है । उदा० - नइ
खलपु ।
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कहा है ? ( कारण पीछे माउच्छा । बहुल का होता है । उदा०
२. क्रम से:- - माला महिला । आर्यिका । प्रार्थिका । ४. भणित ।
५. श्रमणी ।
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