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________________ प्राकृतव्याकरणे नामन्त्र्यात् सौ मः || ३७ ॥ आमन्त्र्यार्थात् परे सौ सति क्लीबे स्वरान्म से: ( ३.२५ ) इति यो म् उक्तः स न भवति । हे त । हे दहि । हे महु । संबोधनार्थी सि ( प्रत्यम ) आगे होने पर, 'क्लीवे स्वरान्म से : ' सूत्र में कहा हुआ जो म्, वह नहीं होता है । उदा० हे तण "महु । डो दीर्घो वा ॥ ३८ ॥ आमत्त्र्यार्थात् परे सौ सति अतः सेड : ( ३२ ) इति यो नित्यं डोः प्राप्तो यश्च अक्लीबे सौ ( ३१६ ) इति इदुतोरकारान्तस्य च प्राप्तो दीर्घः सः वा भवति । हे देव हे देवो । हे खमासमण हे खमासमणो । हे अज्ज हे अज्यो । दीर्घः । हे हरी हे हरि । हे गुरू हे गुरु । जाइविसुद्वेण । पहू हे प्रभो इत्यर्थः । एवं दोष्ण पहू जिअलोए । पक्षे । हे पहु । एषु प्राप्ते विकल्पः । इह् त्वप्राप्ते हे गोअमा' हे गोअम । हे कासवा " हे कासव । रेरे चप्फलया' । रे रे निग्विणया १० 1 (. संबोधनार्थी सि ( प्रत्यय ) आगे होने पर, 'अतः सेर्डो:' सूत्र से जो डो नित्य प्राप्त होता है वह, तथा अक्लोवे सौ' सूत्र से इकारान्त और उकारान्त तथा अकारान्त ( शब्दो के अन्त्य ) स्वर का जो दोघं ( स्वर ) प्राप्त होता है वह, वे विकल्प से होते है । उदा०- - हे देव......अज्जो | दोर्घ ( स्वर ) का उदाहरण:हे हरी" पहू (यहाँ ) हे प्रभु ऐसा अर्थ है; एवं दोप्पिलोए । ( विकल्प - ) पक्षमें:- हे पहु । इन ( इकारान्त और उकारान्त ) शब्दों में ( दीर्घस्वर ) प्राप्त होते समय विकल्प है । ( अब ) यहाँ ( यानी आगे दिए उदाहरणों में दीर्घस्वर ) प्राप्त न होते भी, (ऐसा दिखाई देता हैं: ---) हे गोअमा मिग्विणया । ऋतोद्वा ॥ ३९ ॥ १३७ ऋकारान्तस्यामन्त्रणे सौ परे अकारोन्तादेशो वा भवति । हे पितः हे | हे दातः हे दाय २ । पक्षे । हे पिअरं " । हे दायार" । पिन ५९ ११ २. क्षमाश्रमण । १. तृण ३. भयं । ४. जातिविशुद्धेन प्रभो । ५. एवं द्वो प्रभो जीवलोके । ६. प्रभु । ७. गोतम । ८. कश्यप । ९. निष्फल, झूठ बोलने बाला इस अर्थ में चप्पलय देशी शब्द है । १०. निर्घुणक | ११. पितृ । १२. दातु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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