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तृतीयः पाद:
उसः स्सः ॥१०॥ अतः परस्य डसः संयुक्तः सो भवति । पियस्स' । पेम्मस्स। उपकुम्भं शैत्यम् उवकुम्भस्स सीअलत्तणं ।
(शब्द के अन्त्य) अकार के अगले ङस् (प्रत्यय) का संयुक्त स ( =स्स ) होता है । उदा.-पियस्स...... 'सीअलत्तणं।
डे म्मि ॥ ११ ॥ अतः परस्य अॅडित् एकारः संयुक्तो मिश्च भवति । वच्छे वच्छम्मि । देवं देवम्मि । तं तम्मि। अत्र द्वितीयातृतीययोः सप्तमी (३.१३५) इत्यमो ङिः।
(शब्द के अन्त्य) अकार के अगले डि ( प्रत्यय ) को डित् एकार और संयुक्त मि यानी मि (ऐसे आदेश ) होते हैं। उदा.--बच्छे....."तम्मि । ( देवं और सं इन उदाहरणों में) 'द्वितीयातृतीययोः सप्तमी' सूत्रानुसार अम् (प्रत्यय) का हि है।
जसशस्ङसित्तोदोद्वामि दीर्घः ॥ १२ ॥ एषु अतो दी| भवति । जसि शसि च । वच्छा। ङसि । वच्छाओ वच्छाउ वच्छाहि वच्छाहितो वच्छा। त्तोदोदुषु । वृक्षेभ्यः । वच्छत्तो । ह्रस्वः संयोगे। (१.८४ ) इति ह्रस्वः । वच्छाओ। वच्छाउ। आमि । वच्छाण । ङसिनैव सिद्धे त्तोदोदुग्रहणं भ्यसि एत्वबाधनार्थम् । ___जस्, बस, सि, सो, दो, दु और आम् ( ये प्रत्यय आगे) होने पर, ( उनके पीछले) प्रकार का दोघं ( स्वर यानी आकार ) होता है। उदा०-जम और शस् ( आगे होने पर ):-बच्ला । ङसि ( आगे बोने पर ) :-इच्छाओ... ..'बधा। त्तो, दो और दु (आगे होने पर ):- वृक्षेभ्यः बच्छतो, ( इस बच्छत्तो रूप में यद्यपि पिछला अ दीर्घ होता है यानी छ का च्छा होता है, तथापि ) ह्रस्वः संयोगे' सूत्रानुसार ( बह दीर्घ आ) ह्रस्व हुआ है, वच्छाओ, बच्छाउ । माम् ( मागे होने पर ):--वच्छाण । ( सच कहे तो असि प्रत्यय के निर्देश से (त्तो; दो और दु प्रत्ययों का ग्रह्य होकर, सूत्र में उनकी ) सिद्धि होने पर भी, तो, दो और दु ऐसा ( स्वतंत्र ) निर्देश ( सूत्र में ) किया है, कारण ( ३.१५ सूत्र के अनुसार ) भ्यस् प्रत्यय आगे होने वक्त होने वाले ए का बाध यहाँ हो, इसलिए ।
भ्यसि वा ॥ १३ ॥ भ्यसादेशे परे अतो दीर्घा वा भवति । वच्छाहिन्तो वच्छेहिन्तो। वच्छासुन्तो वच्छे सुन्तो । वच्छाहि वच्छेहि । १. क्रमसे:-- /प्रिय । / प्रेमन् ।
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