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________________ प्राकृतव्याकरणे १२३ इजेराः पादपुरणे ।। २१७॥ इ जे र इत्येते पादपूरणे प्रयोक्तव्याः । न उणा' इ अच्छीइं। अणुकलं वोत्तुं जे । गेण्हइ' र कलमगोवी। अहो। हहो । हेहो। हा। नाम । अहह । ही सि । अयि अहाह । अरि रिहो इत्यादयस्तु संस्कृतसमत्वेन सिद्धाः । ____, जे भोर र ऐसे ( अव्यय पद्य में ) पाद पूरण के लिए प्रयुक्त करे। उदा०न उणा....."गोषी । अहो, हंहो, हेहो, हा, नाम, अहह, ही सि, अयि, अहाह, अरि, रि, हो इत्यादि (अव्यय) संस्कृत-समान स्वरूप में ही सिद्ध होते हैं। प्यादयः ॥ २१८ ॥ प्यादयो नियतार्थवृत्तयः प्राकृते प्रयोक्तव्याः । पि वि अध्यर्थे । (अपने अपने नियत अर्थों में होने वाले पि इत्यादि (अव्यय) प्राकृत में (उस उस अर्थ में ) प्रयुक्त करे। उदा०-पि, वि ( ये अव्यय ) अपि (अव्यय ) के गर्ष में (प्रयुक्त करें)। इत्याचार्यश्रीहेमचन्द्रसूरिविरचितायां सिखहेमचन्द्राभिधानस्वोपज्ञशब्दानुशासनवृत्तौ अष्टमस्याध्यायस्य द्वितीयः पादः ॥ ( आठवें अध्याय का दूसरा पाद समाप्त हुआ। ) 400A १. न पुनः (इ) मक्षिणी । २. अनुकूलं वक्त (जे)। ३. गृह्णाति (र) कलमगोपी । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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