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________________ अनेक काव्यग्रन्थ माहाराष्ट्री प्राकृतमें हैं। उदा०-ग उडबह, सेतुबन्ध इत्यादि । संस्कृत नाटको में पद्यभाग प्रायः महाराष्ट्री में होता है । आर्ष ( अर्धमागधी) हैमचन्द्र कहता हैं कि प्राकृत ( = माहाराष्ट्री ) के नियम विकल्पसे आर्ष प्राकृतपर लागू पड़ते हैं। आर्ष प्राकृत शब्दसे हेमचन्द्रको श्वेतांबर जैनोंके मूलातम अन्योंकी अर्धमागधी भाषा अभिप्रेत है, यह उसके सूत्र ४२८७ के ऊपरकी वृत्तिसे २"स्पष्ट हो जाता है। इसी को ही अर्धमागध, अर्धमागधा ( या अर्धमागधी ) नाम दिये जाते हैं। इसीको जैन ग्रन्थ 'ऋषि-भाषिता' कहते हैं। यह अर्धमागधी संस्कृत के नाटकमें दिखाई देनेवाली अर्धमागधीसे भिन्न स्वरूप है; इसीलिए इसको कभीकभी जैन अर्धमागधी कहा जाता है। शौरसेनी शूरसेन देशमें उत्पन्न हुई शौरसेनी भाषा है । संस्कृत नाटकोंमें नायिका और सखी मुख्यतः गद्यभागमें शौरसेनी प्रयुक्त करती हैं । प्राकृत व्याकरणोंमें भी इस भाषाके उदाहरण मिलते हैं। मागधी मगध देशकी भाषा मागधी है। संस्कृत नाटकोंमें राजाके अन्त:पुरके लोग अश्वपालक, राक्षस इत्यादि पात्र मागधी भाषा प्रयुक्त करते हैं। अशोकके शिलालेख और प्राकृत व्याकरण इनमें भी इस मागधीके उदाहरण दिखाई देते हैं । पैशाची पिशाच देशों की भाषा पैशाची ऐसा लक्ष्मीधर कहता है । तथापि ये पिशाच देश कौनसे हैं -~-इस बारेमें मतभेद है । वाग्भट पैशाची को 'भूतभाषित' कहता है । भूतपिशाच इत्यादि कुछ नीच पात्रोंके लिए पंचाचीका प्रयोग कहा गया है । माकंडेय कहता है कि पैशाचीके ग्यारह उपप्रकार हैं; तथापि वह स्वयं मात्र कैकेय, शौरसेन और पांचाल ये पैशाचीके तीन ही प्रकार मानता है। गुणाढ्य की बृहत्कथा---जो आज अनुपलब्ध है-पैशाची भाषामें भी ऐसा कहा जाता है। प्राकृत व्याकरण, हेमचन्द्र के कुमारपालचरित और काव्यानुशासन, कुछ षड्भाषा स्तोत्र इनमें पैशाचीके उदाहरण मिलने हैं । चूलिका पैशाची हेमचन्द्रने चूलिका पैशाचीकी जो विशेषताएँ दी हैं वे अन्य वैयाकरणों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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