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अंतिम आठवें अध्यायमें प्राकृत व्याकरणका विवेचन है। आठवां अध्याय चार पादोंमें विभक्त है। इस अध्यायमें प्राकृत ( = माहाराष्ट्री ), आर्ष, शौरसेनी, मागधी, पशाची, चूलिका पैशाची और अपभ्रंश इन भाषाओं के लक्षण और उदाहरण हेमचन्द्रने दिए हैं। इस प्राकृत व्याकरण मेंसे नियमोंके उदाहरण हेमचन्द्रकृत 'कुमारपालचरित' ग्रन्थमें भी दिखाई देते हैं।
हेमचन्द्र के वणित प्राकृतोंका संक्षिप्त परिचय हेमचन्द्रका 'प्राकृत' शब्द सामान्यतः प्राकृतभाषावाचक न होकर, वह शब्द उसने माहाराष्ट्रो प्राकृतके लिए प्रयुक्त किया है। उससे कहा हुआ प्राकृतका स्वरूप माहाराष्ट्रीके स्वरूपसे मिलता-जुलता है। और इस संदर्भ में, 'तत्र तु प्राकृतं नाम महाराष्ट्रोद्भवं विदुः 'यह लक्ष्मीधरका वचन ध्यान देने योग्य है । आर्ष प्राकृत का उल्लेख हेमचन्द्र बीच-बीचमें करता है। हेमचन्द्रसे वणित धुलिका पंशाची प्रधान प्राकृत न होने, पैशाचीकी ही एक उपभाषा दिखाई देती है। इसकी पुष्टि होती है उस वचनसे जो हेमचन्द्रने अन्यत्र कहा है। अभिधानचितामणि मामक अपने ग्रंथ में, 'भाषाशट संस्कृतादिकाः' इस अपने बाक्यका विवरण करते समय हेमचन्द्र लिखता है:-'संस्कृत-प्राकृत-मागधी शौरसेनी-पैशाची अपभ्रंश-लक्षणाः । यहाँ चूलिका पैशाचीका स्वतन्त्र भाषाके स्वरूप में उसने निर्देश नहीं किया है। इसलिए चलिका पैशाचीको पैशाचीका प्रकार समझना अनुचित नहीं होगा । एवं,प्राकृत (माहाराष्ट्री) शौरसेनी, मागधी, पैशाची और अपभ्रंश इन प्रधान प्राकृतोंका विवेचन हेमचन्द्र ने किया है, ऐसा कहने में कोई आपत्ति नहीं होगी। इन प्राकृतोंकी अधिक जानकारी निम्नानुसार है
माहाराष्ट्रो हेमचन्द्र इत्यादि वैयाकरण माहाराष्ट्रीको प्राकृत कहते हैं, तो प्राकृतचन्द्रिका उसे 'आर्ष' नाम देती है। दंडिन्के मतानुसार, महाराष्ट्राश्रया प्राकृत प्रकृष्ट है ( महाराष्ट्राश्रयां भाषां प्रकृष्टं प्राकृतं बिदुः)। प्राकृत वैयाकरणोंके मतानुसार, सर्व प्राकृत भाषाओं में माहाराष्ट्रीही मुख्य प्रधान और महत्त्वपूर्ण है। वह अन्य प्राकृतोंकी मूलभूत मानी गई है । अथवा अन्य प्राकृतोंके अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयुक्त समझी गई है। अतः प्राकृत वैयाकरण प्रथम माहाराष्ट्रोका स्वरूप सम्पूर्ण और सविस्तार रूप में बताते हैं, और बादमें उससे अन्य प्राकृतोंकी जो विभिन्न विशेषताएं हैं उनको बताते हैं । हेमचन्द्र ने इसी पद्धतिको स्वीकारा है।
माहाराष्ट्र नामसे यह स्पष्ट होता है कि यह प्राकृत महाराष्ट्रमें उत्पन्न हुई और वहां प्रचार में थी। परन्तु इस बारे में कुछ लोग संदेह व्यक्त करते हैं।
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