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________________ ( - संस्कृत सम )-जो संस्कृत शब्द कोई भी विकार न होते हुए प्राकृतमें जैसे के तैसे आते हैं वे तत्सम शब्द । उदा०-इच्छा, उत्तम, मन्दिर इत्यादि । ( २ ) तद्भव ( = संस्कृतभव )---जो संस्कृत शब्द कुछ विकार/बदल पाकर प्राकृतमें आते हैं, वे तद्भव शब्द । उदा०---अग्गि (/ अग्नि ), हत्थ (V हस्त ), पसाय (/ प्रसाद ). किवा (५/ कृपा ) इत्यादि । प्राकृतमेंसे ९५ प्रतिशतसे अधिक शब्दोंके मूल संस्कृत भाषामें दिखाई देते हैं। ( ३ ) देशी अथवा देश्य--प्रायः जिन शब्दोंका संस्कृतसे कुछ सम्बन्ध नहीं जोड़ा जा सकता है, ऐसे शब्द। उदा० ---- खोडी, बप्प, पोट्ट इत्यादि । प्राकृतों की स्तुति ___ कुछ पूर्ववति लेखकों का मत है कि संस्कृतसे प्राकृत तथा अपभ्रंश भाषाएँ अधिक अच्छी हैं। बालरामायणमें राजशेखर कहता है :--प्रकृतिमधुराः प्राकृतगिरः । शाकुन्तल नाटकके टीकाकार शङ्करके मतानुसार . ---संस्कृतात् प्राकृतं श्रेष्ठ ततोऽपभ्रंश भाषणम् । कुवलयमालाकार उद्योतन कहता है :- संस्कृत भाषा दुर्जनों के हृदयके समान विषम है; प्राकृत सज्जनोंके वचनके समान सुखसङ्गत/शुभसङ्गत ( सुह-संगम ) है; तो अपभ्रंश प्रणयकुपित प्रणयिनीके वचनके समान मनोहर है। __हेमचन्द्र और उसके ग्रन्थ प्रारम्भमें ही कहा गया है कि प्रस्तुत प्राकृत व्याकरण आचार्य हेमचन्द्रने लिखा है। यह हेमचन्द्र जैनर्मियों में माननीय था। उसके पास तीव्रद्धिमत्ता, गहरा ज्ञान और अच्छी प्रतिभा थी। व्याकरण, कोश, काव्य, छन्द, चरित्र इत्यादि साहित्यके विविध अङ्गोंमे हेमचन्द्र ने लेखन किया है। उसका लेखन संस्कृत और प्राकृत दोनों भाषाओं में है। उसका बहुतांश लेखन उसके आश्रयदाता राजाकी सूचनानुसार हुआ ऐसा दिखाई देता है। अपने जिन ग्रन्थोंका अधिक स्पष्टीकरण करना हेमचन्द्र को आवश्यक लगा, उन ग्रन्थोंपर उसने अपनी स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी है। गुजरात देशके धन्धुका नामक गाँव में विक्रम सम्बत् ११४५ ( इ० स० १.८८ में ) में हेमचन्द्रका जन्म मोढ महाजन (बाणी ) जातिमें हुआ। उसके परिवारके धर्मवे बारेमें निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है। फिर भी उसपर जैनधर्मका प्रभाव दिखाई देता है। हेगचन्द्रका जन्मनाम चांगदेव था; उसके पिता का नाम चच्च था; और उसकी माताका नाम पाहिणी ( या चाहिणी ) था। एक वार देवचन्द्र सूरि नाम एक जनधर्मानुयायी धन्धुका गाँव में आया। चांगदेवके कुछ अङ्ग चिह्न देखकर, उसको जनसाधु बनानेकी इच्छासे, देवचन्द्रने पाहिणीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
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