SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीयः पादः पद में अनादि होनेवाले शेष ( व्यञ्जन ) तथा कहा हुआ ) आदेश, इनका द्वित्व होता है। उदा०-शेष ( व्यञ्जन का द्वित्व :-कप्पतरू · मुक्खो। आदेश ( का द्वित्व):--डक्को रुप्पी । क्वचित् ( ऐसा ! द्वित्व नहीं होता है ( अन्य कुछ वर्णान्तर होता है। उदा.- ) कसिणो। ( पद में ) अनादि होनेवाले ऐसा क्यों कहा है ? ( कारण शेष किंवा आदेश अनादि न होने पर ( यानी आदि होने पर ) उसका द्वित्व नहीं होता है ! उदा०-) खलि...''खम्भो । ( संयुक्त व्यञ्जन के स्थान पर संयुक्त ध्यान का आदेश यदि कहा हुआ हो, तो वहां पहले ही ) दो व्यञ्जनों का अस्तित्व होने से वहां फिर) द्वित्व नहीं होता है। उदा:-विञ्चओ, भिण्डिवालो। द्वितीयतुर्ययोरुपरि पूर्वः ॥ १० ॥ द्वितीयतुर्ययोद्वित्वप्रसंगे उपरि पूर्वी भवतः। द्वितीयस्योपरि प्रथमश्चतुर्थस्योपरि तृतीय इत्यर्थः । शेष । 'वक्खाणं । बग्धो । मुच्छा। निज्झरो। कळं । तित्थं । निद्धणो । गुप्फ । निब्भरो । आदेश । जक्खो । धस्य नास्ति । अच्छी । मज्झं। पछी। बुड्ढो। हत्थो। आलिद्धो। पुप्फं। भिब्भलो। तैलादी (२.९८) द्वित्वे 'ओक्खलं । सेवादी (२.६६ ) "नक्खा । नहा । समासे । कइद्धओ कइधओ। द्वित्व इत्येव । “खाओ। (वर्गीय व्यञ्जनों में से ) द्वितीय और चतुर्थ व्यञ्जनों के द्वित्व होने का प्रसंग उपस्थित होने पर, उनके पूर्व होनेवाले दो व्यञ्जन ( यानी प्रथम और तृतीय व्यञ्जन) पहले के यानी प्रथम अवयव के रूप में आते है । ( अभिप्राय यह कि ) द्वित्तीय व्यञ्जन के पूर्ण पहला व्यञ्जन और चतुर्थ व्यञ्जन के पूर्व तीसरा व्यञ्जन आता है। उदा.शेष ( व्यञ्जन का द्वित्व होते समय ):-वक्खाणं.... मिन्भगे। मादेश (व्यञ्जन का द्वित्व होते समय ):---जक्खो; घ का द्वित्थ (दिखाई नहीं देता है; अच्छी.. भिम्भलो। सैलादौ सूत्र के अनुसार, द्वित्व होते समय:--ओक्स्चलं । 'सेवादी' सूत्र के अनुसार (विकल्प से द्वित्व होते समय):- नक्वा, नहा । समास में (द्वित्व होते समय ):कइद्घओ, कइधओ। (द्वितीय और चतुर्थ व्यञ्जनों का द्वित्व होते समय ही (प्रथम और तृतीय व्यञ्जन पहले आते हैं, द्वित्व न होते समय, वैसा नहीं होता है । उदा०-) खाओ। १. क्रमसे-व्याख्यान । व्याघ्र। मूर्छा । निर्झर । कष्ट । तीर्थ । निधन । गुल्फ । निर्भर २. पक्ष । ३. क्रमसे:- अक्षि । मध्य । पृष्ठ । वृद्ध । हस्त । आश्लिष्ट । पुष्प । विह्वल ४. उदुखल। ५. नखाः । ६. कपिध्वज। ७. खात । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001871
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorK V Apte
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1996
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, P000, & P050
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy