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________________ आरूढउ महिवर वारणिदि ग्गोग्गखग्गवाडकरेहिं केसरिकिसोरु णं महिहरिंदि । सेविजमाणु यिकिंकरेहिं । धवलायवत्तचलचामरेहिं । पेक्खेपिणुं मणि अच्छर हु खोहु । णं सुरवरिंदु बहुसुरवरेहिं चल्लिउ जयलच्छी दिण्णसो हुँ धत्ता - केण वि चंदणु केण वि घुसिणु केण वि कुसुमदामु धरिउ । णायरणरणियरे जंतरण जिणपयजुयलउ संभरिउ ॥ ८ ॥ पुप्फयंतविरइयउ 10 Women of the city also start to worship the Jina. लेविणुं अहिमुँह वियसंति जाइ वहु का विलेइ णिवचंपयाई वहु का वि देइ करि कंकणाई वहु का वि सदकेलिवन्तु वहु का वि विरेह कुंभएण बहु का विचिणई मंदारयाई वहु का वि सहइ करकुवलएण कवि भोयराउ वडूंतु महद्द अप्पाणु ण लिप्पइ कुंकुमेहिं काइ विझाइ भवविब्भमंतु कवि ण वि दाव उज्जल वि दंत धत्ता - इय पुरणारीयणु णीसरिउ पयमंजीररायेंमुहलु | Jain Education International वहु का वि हंसलीलाइ जाइ । णियगुरुहु सरह णिश्चं पयाई । मणिभायणि पूयाकंकणाई । वणलच्छि व दावइ केलिवन्तु । णं णहसिरि उग्गयकुंभएन । सिक्खावइ नियमं दारयाई । पत्थिवावत्ति व जिह कुवलपण ढोय आहरण किं पि महइ । कवि वच्चइ गयणेउरकमेहिं । अवयं णिउ पिउ पासहिं भमंतु । सुमर मणि मुणिवर संत दंत । परिभमइ रमइ पहि चिकमंई मुहणीसासभमियभसलु ॥ १० ॥ 11 Hymn to the Jina by the king. सुरणरविसहरवरखयरसरणु पइसरइ णिवइ पेहु सरइ थुणइ [1.9.6 For Private & Personal Use Only 10 कुसुमसर पहरहर समवसरणु । बहुभवभर्वकयरयपडलु धुणइ । • AB omit this foot. ८ C वोहु. ५ CE णग्गुग्ग. ६ AB वाहुड .. C वावड°. ९ 1) पेच्छेपिणु; CE पेक्खेविणु. १० E नियणयर. 10. 9. C लेप्पणु. २ D 'ह. ३ E णव° ४ DE णु. ५ AC विइ; E विरइ. ६ C गह; ७ ACE लइयउ. ८ DE 'वंतु. ९ CE ग° १० CE राव. ११E च°. II. १. D पड़. २ AC भय. 5 10 www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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