SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुष्फयंतविरइयउ [9.5.9दीवक्खए कहिं लब्भइ अंजणु सञ्चउ भासइ मिणिरंजणु । खाण खणि अण्णु जीउ जइ जायउ तो बाहिरे गड किह घरु आयउ। 10 अण्णे थवियउ अण्णु ण याणइ सुण्णु वि वाइ काई वक्खाणइ । घत्ता-सुण्णु असेसु वि जइ कहिउ तो किं तहो पंचिंदियदंडणु। चीवरणिवसणु वयधरणु सत्तहडीभोयणु सिरमुंडणु ॥५॥ Remarks on the orthodox philosophies of the Brahmans. पुहइ बंभु पाणिउ लच्छीसेरु हुयवहु रुद्द पवणु पुणु ईसरु । सिउ' अंबरु कुलकउले भाणिउँ तेण वि तञ्च किं पि ण वियाणिउ । तं जि समासिउ दूसियदइवे गयणु जि भणिउ सयासिउ सइवें । णिकलु किं पसरइ आउंचंह णिक्कलु किं परमाणुय संचइ । णिकलु किं तणु गिण्हइ वित्तह णिक्कलु किं परकजई चिंतइ । णिकलु किं भणु करइ वि धरइ वि णिक्कलु किं तिहुयणु संघरइ वि। णिकलु किं सई पढइ पढावइ णिक्कलु मोक्खमग्गु किं दावइ । णिक्कलु किं अटुंगई धारइ णिक्कलु किं परु पेरइ वारइ । णिक्कलु किं परिणामहो वच्चइ णिकलंसु किं गार्यइ णच्चइ। घत्ता-णिक्कलु णिच्चलु णाणतणु सिद्धत्तेण सहावे थकइ । 10 अप्पउ मरइ ण संभवइ कहिं किर सो जगजत्तहे दुक्कइ ॥६॥ Remarks on the ortholox philosophies continued. सित्थु जाइ किं जवणालत्तहो घउ किं पुणु वि जाइ दुद्धत्तहो । सिद्ध भमइ किं भवसंसारए गहियविमुक्तकलेवरभारए। अक्खवायकणयरमुणिमण्णिउ सिवगयणारविंदु किं वण्णिउ । मयणडहणु किं महिलासत्तउ णाणवंतु किं मइरए मत्तउ। णिम्मलु किं परवइरे णडियउ णिरहु वि अयसिरखुंटणे पडियउ। ५ E कहिं. ६ : वाउ, 6. १E लच्छीहरु. २ A सिय; BD सिव. ३ E भणियउ. ४ E दूसिवि. ५ E आवंचइ. ६ A परमाणु सयंचइ. ७ ABC घत्तइ.८Eगावइ. 7. १ ABD केण य. Jain Education International For Private & Personal Use Only onal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy