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________________ VIII Mahavyala enjoys life at Kusumapura. जयवम्महो णंदणु णयणाणंदणु गणियासुंदरिहिययहरु । कुसुमउरे रवण्णए धणपरिपुण्णए बाहिरपुरे हिंडइ पवरु ॥ ध्रुवकं ॥ हिंडइ णंदणवणु पेच्छमाणु धयरटुमणोहरु गच्छमाणु । सिहि णश्चमाणु कोइलु लवंतु जोइयउ परावउ कलै कणंतु । पभणिउ तरुणिहिं मणियाइं जाई कहिं सिक्खिओ सि तुहं पक्खि ताई। 5 ओसरसु कीर कोमलिय ललिय मा भंजहि तुहुं मायंदकलिय। किं मुक्ख तिक्खचलचंचु घिवसि पुष्फवइवेल्लि पुणु पुणु वि छिवसि। अच्छउ बाहिरे वेढिवि भुयंY माणिउ केयइकुसुमंतरंगु। अभंतरलीणे छप्पएण रसाणदूणवडियमएण। कुमुइणियहे परमाणंदु दिति सीय वि ससियर पउमिणि उहंति। 10 उण्ह वि रवियर तहे सुहु जणंति महिलउ पियदोसु वि गुणुं मुणंति । विणु सोहगे किं करइ वण्णु अंबईयहे महुयरु णउ णिसण्णु। घत्ता-जो जाइहे रत्तउ भमइ पमत्तउ दरिसियकुसुमविहूइयहिं । सो कयरसभंगई कडयई अंगई भमरु ण चुंबइ जूहियहिं ॥१॥ 1. १E मणोरह. २ MSS कोइल. ३E कल. ४ E मणिआइं. ५ D वेडिवि. ६ E भुअंगु. ७ C रसपाण. ८ E कुमुयणियहि. ९ CE गुण गणंति. १० C अच्चइयहो. ११ E चुमइ. १२ AB originally give रूयहे but correct it as जूहीयहे; D जूहीयहे; C तुइयहो; or रुझ्यहो; E स्वहो. नागकुमार....११. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001870
Book TitleNayakumarchariu
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1989
Total Pages280
LanguagePrakrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Grammar
File Size18 MB
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