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________________ कुवलयमाला 1 बुद्धी देव-भाषा पंचन-येता तु धम्म-पदिवसी अपर-विदेहे दंसण कामगईदस्य युते ॥ उच्छाद सत्त-सारो सिद्धी विजाए भोग-संपत्ती । सम्मन्त-दाण-कुसलत्तणं व तह वहरगुत्तम्मि ॥ दिव्याणं संलाबोबो सो सर्वभुदेवस्य मा कुण कुटुंब-कजे पावं एसा गई तस्स ॥ सुह-संबोधी-सुमिणं मद्दारहे जम्मि ताइँ भणियाइँ । भव्वाणं एस ठिई थोवेण वि जेण बुज्झति ॥ आराहणा य अंते आलोयण-जिंदणा य वोसिरणा । पंच- णमोक्कारो विय मोक्खस्स य साहूणो भणिभो ॥ केवल-नाप्पत्ती भणिवा सेटीए वग-गामाए। मोक्त्रे परमं सोक्खं संपता तस्य सम्बे वि ॥ 1 ६ ४२८ ) जं खल-पिसुणो अहं व मच्छरी रक्त मूढ-युग्गहिओ । भणिहिह अभाणियन्त्रं पि एत्थ भणिमो सर्व चेय रागो मूल्य विदो कि कीरह राम-बंधना एसा पडिवचणं तत्थ इमं जसु न राग-पित्तरस रागं णिसिकण व पडर्म मह तस्स होह वेरम्यं रागेण विया सादसु र करस किं दोउ | धम्मस्सफर्ड पूर्व भक्लेवनिकारणं सम्यं च रागाओं विरागो वि हु पढने रागो को तेण ॥ वसुदेव- धमिलाणं हिंडीसुं कीस णत्थि रागो ति । तत्थ ण किंचि वि जंपसि अम्हं मज्झे ण तुइ हो ॥ रागेण सुमं जालो पच्छा धम्मं करेसि वेरणी रागो युथ पसरथो विराग देऊ भवे जम्हा ॥ कीस पद्दण्णं राया दढवम्मो कुणद्द गुग्गुलाईयं । भज विमिच्छादिट्ठी जुजद्द सव्वं पि भणिडं जे ॥ किं सो राया णम्मं लच्छीऐं समं करेह देवीए । णणु होजा रज-सिरी अरहइ सिंगार-वयणाई ॥ पुरिसाइ-लक्खणेहिं किं कीरह एत्थ धम्म-उल्लावे । णणु धम्मो कव्वाणं अक्खेवणि-कारणं जम्दा || हरि - खंदरूद्द - कुसुमाउहेसु उवमाण णागरी-वण्णे । कालम्मि तम्मि कत्तो उवमाणं किं असंतेहिं ॥ भण्णए समए भणियाणव- शुक्ला पडि कामपाला व रुदा खंदा व पुणो भए विज-सिद्धति | दाणं रुदाणं गोविंदाणं च जेण अंगेसु । णामाइँ सुणिज्जंति वि सासय-रूवेसु सव्वे ॥ चोज ण होह एवं धम्मो कव्वस्स जेण उवमाणं । कीरइ अणसंते वि हु मच्छउ ता लोय-सिद्धेसु ॥ उ पिसुणाण इहं बोलीणो अवसरो ति णो भणियं । सम्ब न्विय धम्म-कहा सम्मत्तुप्पायणी जेण ॥ ६ ४२९) जो पढ भाव-तो महवा निसुणे महव वाएह जद सो मम्यो वस्त्रं सम्म जावर तस्स ॥ ल पि थिरं होहि होइ वियो कई य पत्तट्ठो । तम्हा कुवलयमालं वाएजसु हो पयतेण ॥ जो जाणइ देसीओो भासाओ लक्खणाइँ धाऊ य । वय-गय-गाहा-छेयं कुवलयमालं पि सो पढउ ॥ याहूँ जो जन्याणइ सो वि हु वाएउ पोत्थयं घेत्तुं । एत्थं चिय अह णाहि कद्दणो णिउणत्तण-गुणेण ॥ जो सज्जनो वियड्डो एसा रामेइ तं महालक्खं । जो पिसुण-दुव्वियङ्को रस-भावं तस्स णो देह ॥ जीऍ मद्द देवयाए अक्खाणं साहियं इमं सव्वं । तीए चिय णिम्मविया एसा अम्हे मिसं एत्थ ॥ दियइस्स पहर मेरो ग्रंथ-सर्व कुछ भणसु को पुरिसो हियब गया हिरि-देवी जड़ में लिक्रस णो दोइ ॥ परमाणम्मि पठमप्यनाए पठमेण व्य-पडमग्मि दिवय-पडमम्मि सा मे हिरि देवी दोट संगिहिया ॥ जह किंचि लिंग- भिण्णं विभत्ति-भिण्णं च कारय-विद्दीणं । रहसेण भए लिहियं को दोसो एत्थ देवीए ॥ 3 9 12 ४१९ 18 18 21 24 27 करोति स एय विरागदेतू 133 दमम्मो तीन मिच्छादि J 1) P देवनाण, कामदसतो. 2 ) विज्ञान सम्मच 3 ) बोहित्यं कुटुंब 4) संरोही. 5 for य after जिंदणा, P य हसाहणं भणिओ. 6 ) P adds नाग before णामाए, P मोक्खं, adds ते after तस्थ. 7) J बुग्गाहियं. 9 ) P रागं निद्द सिऊण पढमं रागो अहं तस्स वेरग्गं, P किह for किं, P होइउ. 10) Padds चि after फलं, P कब्वं for सम्यं राम को 12 adds इय before जुज्जर. 14 ) लच्छीय, P नणु भोजा रज्जसिरी- 15) पुरिसाति, P बचाणं for कन्दाणं. 16 ) P रुदसुमा उद्देसु, P वण्णो । 17) P भण्ण adds ए before समय, J -जवला चक्किकामवालाणं ।. 18 P रुंदाणं. सव्वं चिय, J सम्मत्तपायणी जम्हा ॥ 21 ) P पदम for पढर, Pom. जइ, P भस्सं for वस्सं. 22 ) 23 > P कञ्चाई for धाऊ य. 24) om. हु, P पोत्थय, णाहिति P नाई हद्द, करणो हिउ णिउणत्तण. नो देश. 26 ) P जाए for जीए. 27 > कुणउ, जर मि लिहूं", P जब संलिहियं तस्स, देश for होइ. for परमप्पभाए. 29 ) P विहत्ति, 36 20 P होहिति जोदिर. Jain Education International . For Private & Personal Use Only 25 ) P नो होइ for 28) पउमंमि आए 1 8 12 18 18 21 24 27 www.jainelibrary.org.
SR No.001869
Book TitleKuvalayamala Katha Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotansuri, Ratnaprabhvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1959
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size14 MB
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