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________________ 3 6 9 12 २१० उजोयणसूरिविरइया एसो तुह दिहंतो साहिज अवुह बोहणद्वाए। जो एस महाजलही एसो संसार वासोति ॥ जा समिला सो जीवो जंजू होतं मणुतं जे देवा दोग्नि इमे रागद्दोसा जियस्य भवे ॥ अह तेहिं चिय समिला उखिता वर मणुय-हिडाओ परिभवइ कम्म-पवणेरिया व वरं भव-समुदमि ॥ अह राग-दोस-वसभो चुक्को मणुयत्तणाओ सो जीवो। चउरासीति सहस्से सयाण मूढो परिब्भमइ ॥ मणुयत्तणाउ चुको तिरिक्ख-जोणीसु दुक्ख लक्खासु । भमइ अणतं कालं णरएसु य घोर-रूवेसु ॥ अह राग-दोस-दाल दुक्ख संतान हिण्णासो कम्म-पचणेण जीवो भामिलाइ कहिय समिल व ॥ काले अर्पण विसा समिला जहा पाए ति मणुपत्तण- चुको जीवो ण य जाइ मणुष ॥ 15 18 21 24 27 30 83 ६ ३२७ ) भणियं च गुरुणा । जह समिला पट्टा सायर-सलिले भोरपारम्मि पविसेचा जुग-षि संसद् मनुय-भो ॥ पुग्यंते होज जुयं अवरंते तस्स होज समिला उ । जुय हिड्डुम्मि पवेसो इय संसइओ मणुय-लंभो ॥ साढवायची- पोलिया मेण व मामो चुको जीवो पुण माणुस लहइ ॥ 1 अह मणुयत्तं पत्त आरिय-कुल- विहव- रूत्र संपण्णं । कुसमय मोहिय-चित्तो ण सुणइ जिण-देसियं धम्मं ॥ कहं | जह काय-मणिय- मज्झे वेरुलिओ सरस-विहव-संठाणो । इयरेण णेय णजइ गुण-सय-संदोह - भरिभो वि ॥ एवं कुधम्म- मज्झे धम्मो धम्मो त्ति सरिस उल्लावो । मोहंधेहिँ ण णज्जइ गुण-सय-संदोह भरिओ वि ॥ जलवेणु-ब कह विलग्गेण पावलो उच्छू ण-वर्गति के वि वाला रस-सार-गुर्ण अलता तह कुसमय- वेणु-महावणे व जिणधम्म-उच्छु- वुच्छेलो मूदेहिं णेय मुह-रस-रस- रसिय-रसिओ वि जह बहु-तस्वर-महणे वियं णानि कप्पतरु रयणं पुरिसेहिं जेवण कप्पिय-फल-दान-दुरालियं ॥ तह कुसमय-तरु- गहणे जिणधम्मो कप्प- पायव-समाणो । मूढेहिँ णेय णजइ अक्खय-फल-दाण-सुहओ वि ॥ जमलेता तो बहु-सिद्धि-सिद्ध-माहप्पो असवण्णेहिं ण णन सरिसो सामण्ण-मंतेहिं तह कुसमय-मंत-समूह-मज्झ परिसंडिजो इमो धम्मो असयण्णेहिं ण णजद सिद्धि-सर्वगाह-रिदियो । ज सामण्णे धरणीयसम्म अच्छ निहित अर्थ अहो जयागइ बिय इह बहुये अच्छइ विहाणं ॥ तद धम्म-धरणि-निहिये जिणधम्म-विहाण इमे सारं अयुदो ण-याइ थिय मण्णद सरिसं कुतित्येहिं ॥ इस नरवर जिणधम्मो पो विनिगूहिलो भण्णा दिहं पिब पच्छद् ण सुणइ साहिजमाप ॥ मणिर्य हो कई पित विसर्जन सो कुणइ मिच्छा-कम्म-विमूढोण या जं सुंदर लोए ॥ जह पित्त- जरय-संजाय - डाह - डज्ांत-वेविर सरीरो । खंड-घय मीसियं पि हु खीरं अह मण्णए कडुयं ॥ वह पाव-पसर-संतान-मूड-हियो य अवणनो कोइ पायस-संद-सम-रसे जिन बम कहुये ॥ जद तिमिर-रुद्र-दिडी गयगे संते वि पेच्छ संते वि सोण पेच्छ फुड-विवडे घडय-पद-रूवे ॥ तह पाय तिमिर मूढो पेच्छ धम्मं कुतित्थ-तिरथेसु पवई पि णेय पेच्छ जिणधम्मं किं कुणिमो ॥ जह कोसिय-पविख- गणो पेच्छइ राईसु बहल- तिमिरासु । उयम्मि कमलणाहे ण य पेच्छह जं पि अत्ताणं ॥ तह मिच्छा - दिट्ठि जणो कुसमय- तिमिरेसु पेच्छए किं पि । सयलुजोविय-भुयणे जिणधम्म- दिवायरे अंधो ॥ जम्मि सिज्ांति बहुयरा गुग्गा कंकदुषा के पि तर्हि मग पण लिझिरे कठिणा ॥ वह धम्म-कहा- जळणेण तविष-कम्मरस पाव-जीवरस कंकदुवस्य व चितं मणये पि ण छोड़ मडययरं ॥ जह मुद्दायनो दुक वग्धी जणणि संकाए । परिदर पुणो जननी मुझे मोहेण णानि ॥ 1 रूपे Jain Education International [8] ३२६ For Private & Personal Use Only 1 य. 6 ) P दो सद्दालिद, adds ताव after संताव om इय संसओ मनुयभो eo to पोलिया 12 ) P संपुण्णं । J कह for कहूं. 1) P संसारे वासो 2 ) P सा for सो, P तु for खु, सदभावा for भत्रे. 3 ) जीअ P जीय for चिय, उत्थाणिआ for उक्खित्ता णवर, Jom. 2nd line परिभवइ etc., Rather त्रिरं for व वरं. 4 ) P परिभनइ 5 ) P - लक्खेसु, P त for 7 ) P कह वि for जह ण, अन्त ॥ 9 ) P सागर, J पविसेज मेज जु ॥ 10) पुव्वतो, समिला तु . 13 ) P कह for जह J वेरुलिआ सरिसवयणसंठाणा - रसभर, P अलक्खे वा ॥ 3 11 ) चंडवात, 14 ) कुद्धम्म P जह for तह, 18)P कुसुमय अच्छए अत्थं ॥ P सरिसओलाओ, J मोङ्घेण 15 ) P विओ for पाविओ, उच्छं, 16 ) J adds हो after तह, P कुसुमय, विच्छेओ P वुच्छोओ, Pom. रसिय. 17 ) P तरुयर, P कप्पतरुरयं 1. 19) P om. ण before णज्जइ. 20 ) P कुसुमय 21 ) J adds अ before णिहित्तयं, P अइ for इह, 22 ) Prepeats धम्म, P repeats the line अबुहो न याणइ चिय अइ बुहथं अच्छर निहाणं || after इमं सारं । 24 ) P होति कहं, J adds अ before सद्धं, P सर्द, Pण इ for ण सो कुणइ, P जह for जं. 25 ) P जय for जरय, डोहडज्ांत्ति, P मीसयं, हु छीरं. 26 ) P संताप for संताव, Pom. य, J P अयाणुउ कोवि (27) JP गयणे संते, P पेच्छर, Pow संते वि सोण etc. to पि णेय पेच्छइ. 28 ) P तुसिमो for कुणिमो. रूवे ! 29 ) P पक्खिगमो, P तिमिरेसु. 30 ) P कुसुमय, P- भुयुगो 31 ) P तत्तो, किंकदुवा, मणायं सिज्झिरे कढिणे, better सिज्जंति, सिज्जिरे. 32 ) किंकदुयरस P कंकडवरस, उवि for व, P मणुयं 33 ) J मुद्धडयालसओ, वग्घीय, P जणणीं, मेहेण for मोहेण. 3 12 15 18 21 24 27 30 33 www.jainelibrary.org.
SR No.001869
Book TitleKuvalayamala Katha Sankshep
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdyotansuri, Ratnaprabhvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1959
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size14 MB
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