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________________ ९२ ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ नय :- प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को गृहण करने है । ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहा है। जो नाना स्वभावों पृथक करके एक स्वभाव में स्थापित करता है वह नय से का नाम वस्तु को है ॥ १ ८१ ॥ द्रव्यार्थिक नय :- द्रव्य ही जिसका अर्थ अर्थात् प्रयोजन है वह द्रव्यार्थिक नय है ॥ १८४ ॥ पर्यायार्थिक नय :- पर्याय ही जिसका अर्थ प्रयोजन है वह पर्यायार्थिक नय है ॥ १९१ ॥ उपर्युक्त दोनों नय आगम के नय हैं। इनके विषय छहों द्रव्य होते हैं। लेकिन अपनी इस पुस्तक में एक मात्र आत्मद्रव्य को ही मुख्य रखकर इन नयों की भी चर्चा कर रहे हैं । अध्यात्मनय :- अध्यात्म भाषा के द्वारा नयों का कथन करते हैं ॥ २१२ ॥ मूलनय :- मूलनय दो हैं निश्चय और व्यवहार ॥ २१३ ॥ विषय :- उनमें निश्चय अभेद को विषय करता है और व्यवहारनय भेद को विषय करता है ॥ २१४॥ निश्चयनय :- अभेद और अनुपचार रूप से वस्तु का कथन - निश्चय करना निश्चयनय है ॥ २०४ ॥ व्यवहारनय :- भेद और उपचार रूप से वस्तु का कथन - व्यवहार करना व्यवहारय है ॥ २०५ ॥ उपचार :- उपचार नाम का कोई नय नहीं है इसलिये इसे अलग से नहीं कहा है। मुख्य के अभाव में प्रयोजन तथा निमित्त के होने पर उपचार किया जाता है ॥ २११ ॥ इसप्रकार उपर्युक्त नयों की परिभाषाओं, उद्देश्यों, विषय आदि को समझकर, आत्मोपलब्धि रूप अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिये, यथास्थान, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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