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________________ ज्ञान- ज्ञेय एवं भेद-विज्ञान ) ( १६५ वस्तु स्वभाव ज्ञात होनेसे किसी के प्रति राग द्वेष उत्पन्न होने का भी अवकाश नहीं रहता, ऐसे निराकुल आनंद के उपभोग में रत रहने से अपने आत्मवीर्य का उपयोग करते रहते हैं, ऐसे अनंतवीर्य के भोक्ता सिद्ध भगवान हैं । इसप्रकार उपरोक्त अनन्त चतुष्टय रूपी आत्मा का स्वभाव जिनकी पर्याय में प्रगट हो गया है वही उस आत्मा का वास्तविक स्वभाव है । पर्याय में उपरोक्त स्वभाव की प्रगटता ही इस महान सिद्धान्त को सिद्ध करती है, कि अगर द्रव्य में ही यह स्वभाव विद्यमान नहीं होता तो पर्याय में कहाँ से आ सकता था। जैसे कुए में पानी का अभाव होने पर लोटे में पानी कहाँ से आ सकता है । अतः भगवान की प्रगट पर्याय की यथार्थ समझ के माध्यम से मुझे मेरे स्वभाव का विश्वास - श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है । इसलिए भी मेरे स्वभाव की श्रद्धा करने के लिये सिद्ध भगवान आदर्श हैं । भगवान सिद्ध की ज्ञान पर्याय स्व पर प्रकाशक एवं अनेकांत स्वभावी है। ज्ञान एक आत्मा का असाधारण गुण है-लक्षण है, आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने वाला एक महान सिद्धान्त है। ज्ञान से ही आत्मा पहिचाना जाता है । जहाँ-जहाँ ज्ञान होता है, वहाँ-वहाँ ही आत्मा माना जाता है क्योंकि दोनों में व्याप्ति है । इसप्रकार ज्ञान की ही अगाघ महिमा है । ज्ञान का स्वभाव ही स्व- पर प्रकाशी है, वह स्वयं को भी जानता है और साथ ही पर को भी जानता है, ऐसा ही जिनवाणी भी बताती है और हमारे अनुभव से भी सिद्ध होता है । मेरी आत्मा अपने आपके । अस्तित्व को जानते हुए, पर के अस्तित्व को भी जानती है, यह विश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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