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( सुखी होने का उपाय भाग-४ अब हमें गाथा के अर्थ के माध्यम से अपने जीवतत्त्व का स्वरूप समझना है।
नास्तिपक्ष - ( जिनके माध्यम से आत्मा को नहीं पहिचाना जा सकता है।)
अरस = आत्मा रसरहित है, अर्थात् रसना इन्द्रिय के
द्वारा आत्मा नहीं पहिचाना जा सकता। अरूप = आत्मा रूपरहित है अर्थात् चक्षुइन्द्रिय के द्वारा
नहीं पहिचाना जा सकता। अगन्ध = आत्मा गन्धरहित है अर्थात् घ्राणइन्द्रिय के द्वारा
नहीं पहिचाना जा सकता। अशब्द = आत्मा शब्दरहित है अर्थात् कर्णइन्द्रिय के द्वारा
भी नहीं पहिचाना जा सकता। अस्पर्श = आत्मा स्पर्शरहित है अर्थात् स्पर्शन इन्द्रिय के
_द्वारा भी पहिचाना नहीं जा सकता। अनिर्दिष्ट संस्थान = आत्मा का कोई आकार नहीं है अर्थात् शरीर
का आकार आत्मा का आकार नहीं होने से किसी आकार के माध्यम से आत्मा नहीं
पहिचाना जा सकता। अव्यक्त = आत्मा व्यक्त नहीं है अर्थात् इन्द्रिज्ञान के द्वारा
पहिचाना नहीं जा सकता तथा मन के विकल्पों द्वारा भी पहिचाना नहीं जा सकता। वह पर्यायों
के भेदों में भी व्यक्त नहीं होता। अलिंग ग्रहण = आत्मा चिन्हरहित है अर्थात् मन के द्वारा
‘अनुमानपूर्वक भी आत्मा पहिचाना नहीं जा
सकता। इसप्रकार उपरोक्त आठों प्रकारों से भी आत्मा अनुभव में नहीं आता अत: उपरोक्त आठों प्रकारों से रहित आत्मा है।
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