SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. ३३. ३४. अजीवतत्त्व . भेदज्ञान भेदज्ञान का स्वरूप एवं अन्य द्रव्यों से भेदज्ञान जीवद्रव्य का अपनी ही विकारी पर्यायों से भेदज्ञान भेदज्ञान पद्धति के दो प्रकार मैं ज्ञानस्वभावी हूँ ऐसे निर्णय की पूर्व भूमिका-पात्रता आकर्षण का केन्द्रबिन्दु आत्मा ही कैसे हो? सुख का लक्षण निराकुलता ही क्यों? अनाकुलता कहाँ है ? आत्मा सुखस्वभावी ही है ज्ञान एवं सुख से परिपूर्ण आत्मा का स्वभाव अरहंत के समान ज्ञानस्वभाव ज्ञान स्वभाव क्या है? ज्ञानक्रिया का स्वभाव एवं कार्यपद्धति ज्ञान का स्व प्रकाशकपना कैसे? आत्मा परज्ञेयों को कैसे जानता है ? ज्ञान में स्व के माध्यम से ही पर का ज्ञान होता है जाननक्रिया का स्वभाव ज्ञेय निरपेक्ष वर्तना ही है ज्ञेय को जानने वाला ज्ञान, ज्ञेय निरपेक्ष कैसे? निरपेक्ष ज्ञान भी राग का उत्पादक क्यों दिखता है ? वास्तव में राग का उत्पादक कौन? अज्ञान राग का उत्पादक कैसे? सुख अथवा दुःख का उत्पादक ज्ञान नहीं स्व के जानने में सुख एवं पर को जानने में दःख क्यों? अरहंत भगवान सुखी कैसे हैं? चर्चा का सारांश ज्ञातृतत्त्व एवं ज्ञेयतत्त्व की यथार्थ श्रद्धा ही अज्ञान के अभाव का मुख्य उपाय है ज्ञानतत्त्व तो अरहंत के समान विकारी पर्यायों से भिन्नता करने का उपाय दुःख की उत्पत्ति कैसे? २६. or ११० १११ ११७ or ११७ ११९ १२२ १२३ ४४. or or or or १२९ १३२ ४८. ४९. ५०. १३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy