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________________ यथार्थ निर्णयपूर्वक ज्ञातृतत्त्व से ज्ञेयतत्त्व का विभागीकरण ) ( १०५ उसको भी ज्ञेय के सन्मुख नहीं होना पड़ता। लेकिन इतना अवश्य है कि ज्ञानगुण की हर एक पर्याय इतनी सामर्थ्यवाली होती है कि वह अपने द्रव्य में ही रहकर स्व को जानते हुए, पर के सन्मुख हुए बिना भी अपनी सामर्थ्य विशेष के द्वारा, पर का ज्ञान भी कर लेती है। जानने के लिए ज्ञान को ज्ञेय के सन्मुख नहीं होना पडता, ज्ञेय के समीप नहीं पहुँचना पड़ता, ज्ञेय को भी स्वस्थान छोडकर ज्ञान तक नहीं आना पड़ता, न उसके सन्मुख होना पड़ता है, फिर भी ज्ञान अपनी सामर्थ्य विशेष से अपने में रहते हुए भी, पर को जान लेता हैं। यह ज्ञान की एक अद्भुत आश्चर्यकारी सामर्थ्य है। समयसार गाथा ३७३ से ३८२ की टीका के अन्तिम चरण में निम्नप्रकार आया है, जिसके द्वारा उपरोक्त विषय स्पष्ट हो जाता है - “इसीप्रकार दाष्टन्ति कहते हैं : बाह्यपदार्थ – शब्द, रूप, गंध, रस, • स्पर्श तथा गुण और द्रव्य जैसे देवदत्त यज्ञदत्त को हाथ पकड़कर किसी कार्य में लगाता है; उसीप्रकार, आत्मा को स्वज्ञान में (बाह्य पदार्थों के जानने के कार्य में) नहीं लगाते कि 'तू मुझे सुन, तू मुझे देख, तू मुझे सूंघ, तू मुझे चख, तू मुझे स्पर्श कर, तू मुझे जान' और आत्मा भी लोहचुम्बक-पाषाण से खींची गई लोहे की सुई की भांति अपने स्थान से च्युत होकर उन्हें (बाह्य पदार्थों को) जानने को नहीं जातां । परन्तु वस्तु स्वभाव पर के द्वारा उत्पन्न नहीं किया जा सकता इसलिए, आत्मा जैसे बाह्य पदार्थों की असमीपता में (अपने स्वरूप से ही जानता है) उसीप्रकार बाह्य पदार्थों की समीपता में भी अपने स्वरूप से ही जानता है । इसप्रकार अपने स्वरूप से ही जानते हुए (आत्मा) को वस्तु स्वभाव से ही विचित्र परिणति को प्राप्त मनोहर अथवा अमनोहर शब्दादि बाह्यपदार्थ किंचितमात्र भी विक्रिया उत्पन्न नहीं करते। इसप्रकार आत्मा दीपक की भांति पर के प्रति सदा उदासीन (अर्थात् सम्बन्ध रहित तटस्थ) है - ऐसी वस्तुस्थिति है, तथापि जो रागद्वेष होता है सो अज्ञान है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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