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________________ (८३ नय एवं दृष्टि का अन्तर ) चाहता है, वह तो दूसरे समय स्वयं ही व्यय हो जावेगी, उसका तो जीवनकाल ही एक समय का था। वह किसको दूर करेगा? जिसका उत्पाद हुआ वह तो उस समय वैसी ही होने वाली थी मेरे प्रयास से बदल भी नहीं सकती फिर भी उसका ज्ञान तो बना रहता है। अत: उसके प्रति कर्तृत्वबुद्धि छोड़कर उपेक्षा बुद्धि जाग्रत करना ही कर्तव्य है। ऐसा मानने से अकर्तास्वभावी ज्ञायक तत्त्व की सन्मुखता रखने का अभिप्राय जाग्रत हो जाता है। फलस्वरूप भविष्य में होने वाली पर्यायें सहजरूप से वीतरागता सहित प्रगट होंगी। यही उपाय क्रोध के अभाव करने का है। कर्तृत्वबुद्धि से क्रोध का अभाव नहीं होगा। उपरोक्त आत्मार्थी की स्व-पर प्रकाशक स्वभावी ज्ञानपर्याय, जब क्रोध के आकार हुई। उस समय उस ज्ञानपर्याय का इसी योग्यता के साथ उत्पादन हुआ था कि उसका ज्ञेय वह क्रोध की पर्याय ही बने। वह ज्ञान पर्याय अन्य को ज्ञेय बनावे, ऐसी सामर्थ्य पर्याय में थी ही नहीं। इसप्रकार आत्मा जानने की पर्याय में भी, ज्ञेय परिवर्तन कर सके यह प्रश्न ही नहीं रहता । जो ज्ञानपर्याय जिस ज्ञेय को जानने की योग्यता लेकर उत्पन्न हुई, उसका ज्ञेय वही बनेगा ऐसा निर्विवाद सिद्ध होता है। कारण जगत् के सभी पदार्थों में प्रमेयत्व (ज्ञेयत्व) नाम का गुण है। अत: जगत के सभी पदार्थ ज्ञेय होने की योग्यता रखते हैं, आत्मा भी सभी ज्ञेयों को जान सके ऐसे स्वभाव वाला है। तब विचारने योग्य है कि अनंत पदार्थों में से किसी एक ही पदार्थ को ज्ञान क्यों जानता है? अन्य को क्यों नहीं जानता? यह कौन निर्धारण करेगा कि अमुक को जानना, अमुक को नहीं जानना? उत्तर स्पष्ट है कि यह तो स्व-पर प्रकाशक स्वभावी ज्ञान का पर्यायस्वभाव है कि जिस पर्याय का उत्पाद होता है, वह किस ज्ञेय को जानेगी इस योग्यता सहित ही उत्पन्न होती है। उपरोक्त पर्यायस्वभाव को समझने से पर्याय एवं पर्याय के. निमित्तभूत पदार्थों के प्रति कर्तृत्व, भोक्तृत्व बुद्धि का अभाव हो जाता है। श्रद्धा उत्पन्न होती है कि जब किसी में कुछ परिवर्तन करना शक्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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