SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२) ( सुखी होने का उपाय भाग-३ मोक्षमार्ग में कषाय की मंदता जिनवाणी में कषायों का विधान दो प्रकार से किया गया है। कषायों की जाति अपेक्षा एवं उग्रता मंदता अपेक्षा भेद हैं - जाति अपेक्षा अनन्तानुबन्धी,अप्रत्याख्यानावरणी, प्रत्याख्यानावरणी एवं संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभ । इसप्रकार १६ भेद कषायों के होते हैं । मोक्षमार्ग की अपेक्षा इनमें शुभ अशुभ का भेद नहीं है। सभी अशुद्ध भाव हैं। इन १६ प्रकार की कषायों की उग्रता और मन्दता का माप करने के लिए ६ प्रकार की लेश्यायें बताई गईं हैं। अर्थात् ६ लेश्याओं के माध्यम से इन कषायों की मन्दता एवं तीव्रता को, मापा जाता है, वे स्वयं कषायें नहीं हैं, उनमें से कृष्ण, नील, कापोत, लेश्या के भावों को तो अशुभ कहा गया है एवं पीत पद्म, शुक्ल इन तीन लेश्याओं के भावों को शुभ संज्ञा दी जाती है। इसप्रकार उक्त १६ कषायों में से क्रोध और मान कषायों को द्वेष एवं माया और लोभ को राग में, संक्षेपीकरण कर मात्र राग और द्वेष के नाम से सर्वत्र वर्णन किया जाता है। इसीप्रकार कृष्ण, नील, कापोत के समान उग्र राग और द्वेष के भावों को अशुभ भाव एवं पीत, पद्म एवं शुक्ल जैसे मन्दता वाले राग द्वेष भावों को, शुभ भाव कहा जाता है। इसप्रकार कषायों के भेद प्रभेद एवं लेण्या सम्बभी शुभ अणुभ भावों के प्रकारों को समझकर मोक्षमार्ग में साधक-बाधकपने का अभिप्राय निकालना चाहिए। अनन्तानुबन्धी के सद्भाव में अज्ञानी को भी तत्त्व निर्णय का प्रयास करते समय तो शुभ लेश्या के ही परिणाम होते हैं । अशुभ लेश्या के परिणामों में समझने का पुरुषार्थ नहीं हो सकता, इस अपेक्षा से शुभ लेश्या के भावों को सहायक (साधक) कहा जावे तो कोई दोष नहीं है। इसीप्रकार ज्ञानी को अनन्तानुबन्धी के अभाव एवं आपत्याख्यान के सद्भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy