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________________ सुखी होने का उपाय भाग - ३ मंगलाचरण एवं प्रारम्भिक मित्थाभाव अभावतैं जो प्रगटै निजभाव । सो जयवंत रहौ सदा यह ही मोक्षउपाव ॥ आत्मज्ञता प्राप्त करने का उपाय. आचार्य श्री कुन्दकुन्द ने अपने ग्रंथ प्रवचनसार के ज्ञानतत्त्व प्रज्ञापन की गाथा नं. ८२ में गाथा ८० की निम्नप्रकार महिमा की है। सव्वे विय अरहंता तेण विधाणेण खविदकम्मंसा । किच्चा तधोवदेसं णिव्वादा ते णमो तेसिं ॥ ८२ ॥ अर्थ ::― सभी अरहंत भगवान उसी विधि से कर्मांशों का क्षय करके तथा उसी प्रकार से उपदेश करके मोक्ष को प्राप्त हुए हैं, उन्हें नमस्कार हो । उपर्युक्त गाथा में " तेण विधाणेण" के द्वारा आचार्य महाराज ने जिस विधि की ओर संकेत किया है तथा उसी विधि से कर्मांशों का क्षय करके सभी अरहन्त बने हैं। मात्र इतना ही नहीं, उस विधि के ऊपर इतना जोर दिया है कि सभी अरहंतों ने तथा अपरवर्ती आचार्यों ने भी उसी विधि का उपदेश दिया है । इसकी टीका लिखते हुए अमृतचन्द्राचार्य देव ने भी उस विधि के लिए प्रकारान्तर का असंभव होने से द्वैत ही संभव नहीं है, ऐसा कहा है । “यतः खल्वतीतकालानुभूत क्रमप्रवृत्तयः समस्ता अपि भगवन्तस्तीर्थंकरा: प्रकारान्तरस्य संभवासंभावितद्वैतनामुनेवैकेन प्रकारेण क्षपण कर्माशानां स्वयमुनुभूय ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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